Book Title: Viroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Kamini Jain
Publisher: Bhagwan Rushabhdev Granthmala
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अवणधर्म में तीर्थकर परम्परा और म. महावीर तथा महावीर चरित–साहित्य..... 35 . साथ ही राजा श्रेणिक, उनके पुत्र व रानियों का परिचय देने के लिये अन्तकृद्दशांग, अनुत्तरोपपातिक, ज्ञातृधर्मकथा आदि का भी उपयोग किया है। श्री कुमुदचन्द्रकृत महावीर-रास
___ श्री कुमुदचन्द्र ने अपने महावीररास की रचना राजस्थानी हिन्दी में की है। कथावस्तु प्रायः सकलकीर्ति के वर्धमान-चरित पर आधारित है। महावीररास की विशेषतायें निम्न प्रकार है
1. भगवान का जीव जब विश्वनन्दी के भव में था, तब मुनिपद में रहते हुये भी विशाखनन्दी को मारने का निदान किया था। उस स्थल पर कवि ने निदान के दोषों का बहुत वर्णन किया है। 2. भगवान महावीर का जीव इकतीसवें नन्दभव में जब षोडश-कारण भावनाओं को भात है तब । उनका भी बहुत विस्तृत एवं सुन्दर वर्णन कवि ने किया है। 3. श्री ही आदि षट्कुमारिका देवियों के कार्य का वर्णन इस प्रकार किया हैआहे श्री देवी शोभा करि, लज्जा भरि ही नाम कुमारि। आहे धृति देवी संतोष बोलि, जस कीर्ति सुरनारि।। आहे बुद्धि देवी आपी बहु बुद्धि, रिद्ध-सिद्धी लक्ष्मीचंग। आहे देवी तणु ण्हवु नियोग, शुभोपयोग प्रसंग।। 71।। __4. कुमारिका देवियों द्वारा पूछे गये प्रश्नों के उत्तर भी माता के द्वारा अनुपम ढंग से प्रस्तुत किये गये हैं। 5. जन्माभिषेक के समय पाण्डुकशिला पर भगवान को विराजमान करने आदि का वर्णन कवि ने ठीक वैसे ही किया है जैसे आज पंचामृताभिषेक के समय किया जाता है। 6. सौधर्म इन्द्र के सिवाय अन्य देवों के द्वारा भी भगवान के अभिषेक का वर्णन कवि ने किया है। जैसे -
अवर देव असंख्य निज शक्ति लेइ कुंभ। जथा जोगि जल धार देई, देव बहु रंभ।।
7. वीर भगवान के आठ वर्ष का होने पर क्षायिक सम्यक्त्व और आठ मूलगुणों के धारण करने का उल्लेख कवि ने किया है। 8. भगवान