Book Title: Viroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Kamini Jain
Publisher: Bhagwan Rushabhdev Granthmala
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वीरोदय महाकाव्य और भ. महावीर के जीवनचरित का समीक्षात्मक अध्ययन
प्राप्त है। यह साहित्य दर्शन एवं आध्यात्मिक शैली में देश की ज्वलंत समस्याओं का निराकरण भी करता है। इस युग के आदि तीर्थकर ऋषभदेव के ज्येष्ठ पुत्र प्रथम चक्रवर्ती भरत के सेनापति जयकुमार के चारित्रिक जीवन की सरस कथा का आश्रय लेकर इस काव्य की रचना हुई है। इसमें श्रृंगाररस और शान्तरस की समानान्तर प्रवाहमान धारा पाठकों को अपूर्व रस से सिक्त करती है। जयकुमार और सुलोचना की प्रणय कथा का प्रस्तुत वर्णन नैषधीय चरित एवं कालिदास के काव्यों का स्मरण दिलाता है।
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जयोदय महाकाव्य की कथावस्तु ऐतिहासिक है। जयकुमार हस्तिनापुर - नरेश हैं। इनकी पत्नी सुलोचना के चरित्र का आधार लेकर जैन - कवियों ने कथा, काव्य, नाटक आदि की रचनाएँ की हैं। जयोदय महाकाव्य अलंकारों की मंजूषा, चक्रबन्धों की वापिका, सूक्तियों और उपदेशों की सुरम्य वाटिका है। काव्य-क्षेत्र के अन्धकार युग को गौरव प्रदान करने वाला यह गौरवमय महाकाव्य है। प्रकृति - निरीक्षण में महाकवि की सूक्ष्मक्षिका-शक्ति को उसकी कल्पना - शक्ति ने पूर्णतः परिपुष्ट किया है । इस महाकाव्य का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है
कथावस्तु
प्राचीनकाल में हस्तिनापुर में जयकुमार राजा राज्य करता था । वह कीर्तिमान, श्रीमान्, विद्वान, बुद्धिमान, सौन्दर्यवान, भाग्यवान एवं अत्यन्त प्रतापवान था । एक दिन उसके नगर के उद्यान में किसी तपस्वी का आगमन हुआ। उनके आगमन का समाचार सुनकर राजा जयकुमार भी उनके दर्शन के लिये गया। मुनि के दर्शनों से वह अत्यधिक हर्षित हुआ । फिर उनकी स्तुति की और नम्रतापूर्वक कर्त्तव्य- पथ-प्रदर्शन हेतु निवेदन किया । (प्रथमसर्ग)
मुनिराज ने जयकुमार को गृहस्थधर्म के साथ-साथ राजा के. कर्त्तव्यों का भी उपदेश दिया। मुनि के वचनों को सुनकर जयकुमार का शरीर रोमांचित और अन्तःकरण निर्मल हो गया। फिर भक्तिपूर्वक सिर झुकाकर उन्हें प्रणाम कर वह बाहर आया । जयकुमार के साथ एक सर्पिणी
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