Book Title: Viroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Kamini Jain
Publisher: Bhagwan Rushabhdev Granthmala
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वीरोदय महाकाव्य और भ. महावीर के जीवनचरित का समीक्षात्मक अध्ययन
अर्ककीर्ति की पुनः सन्धि हो गई। तत्पश्चात् काशी - नरेश (अकम्पन) ने सुमुख नामक दूत को भरत के पास भेजा। सुमुख ने काशी नगरी का वृत्तान्त बड़ी नम्रतापूर्वक सम्राट भरत से कहा और काशी - नरेश की ओर से क्षमा-याचना की। सम्राट भरत ने राजा अकम्पन और जयकुमार के प्रति प्रशांसात्मक वचन कहे। सम्राट भरत के वचनों से सन्तुष्ट होकर दूत ने उनकी वन्दना की और काशी आकर अयोध्या में हुई वार्ता को काशी - नरेश के सम्मुख प्रस्तुत किया। (नवम् सर्ग)
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जयकुमार के विवाह की तैयारी हुई और जयकुमार को बारात के साथ नगर में आने के लिये आमंत्रित किया गया। जयकुमार बारात के साथ जब नगर में प्रवेश करते हैं तो प्रजाजन बारात की शोभा देखकर हर्षित होते हैं। जयकुमार और सुलोचना को मंडप में लाया जाता है। दोनों एक दूसरे को देखकर प्रमुदित होते हैं। (दशमसर्ग)
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ग्यारहवें सर्ग में 100 श्लोकों में सुलोचना के रूप-सौन्दर्य का वर्णन करते हुये श्रृंगार रस की अद्वितीय ढंग से उपस्थापना की गई है। इसमें जयकुमार द्वारा सुलोचना के रूप-सौन्दर्य का सरसता - पूर्ण वर्णन किया गया है। (एकादश सर्ग)
जयकुमार और सुलोचना का विवाह सम्पन्न हुआ । वर-बधू ने जिनपूजन की। उपस्थित अनेक प्रजाजनों के बीच गुरूजनों ने वर-बधू को शुभार्शीवाद दिया, महिलाओं ने सौभाग्य गीत गाये । दासियों एवं स्त्रियों ने हास-परिहास के साथ बारातियों को भोजन कराया। काशी - नरेश ने जयकुमार एवं वर पक्ष के अभ्यागतों का अत्यधिक सत्कार किया । ( द्वादश सर्ग)
विवाह के पश्चात् जयकुमार ने काशी- नरेश से अपने नगर जाने की आज्ञा ली। सुलोचना के माता-पिता ने अश्रुपूर्ण नेत्रों से सुलोचना एवं जयकुमार को विदा किया। दोनों उन्हें छोड़ने समीपस्थ तालाब तक गये । सुलोचना के भाई भी सुलोचना के साथ थे। सारथी ने मार्ग में स्थित वन और गंगानदी के वर्णन से जयकुमार का मनोरंजन किया। जयकुमार ने उसी के तट पर सेना सहित पड़ाव डाला। (त्रयोदश सर्ग)