Book Title: Viroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Kamini Jain
Publisher: Bhagwan Rushabhdev Granthmala
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वीरोदय महाकाव्य और भ. महावीर के जीवनचरित का समीक्षात्मक अध्ययन ।
परिच्छेद-5 महावीरचरित साहित्य का विकास
जैन काव्य-साहित्य की कतिपय कृतियाँ ईसा की प्रारम्भिक शताब्दियों से पाँचवीं शताब्दी तक उल्लेख रूप में मिलती हैं। पाँचवी से दसवीं शताब्दी तक सर्वांगपूर्ण विकसित आकार-ग्रन्थों के रूप में ऐसी विशाल रचनायें मिलती है, जिन्हें हम प्रतिनिधि रचनायें कहते हैं। भाषा की दृष्टि से जैनकाव्य-साहित्य नाना भाषाओं में सृजित हुआ है। क्रवियों ने एक ओर प्रांजल, प्रौढ़, उदात्त संस्कृत में तो दूसरी ओर सर्वबोध संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश एवं नाना जनपदीय भाषाओं (तमिल, कन्नड़, मराठी, गुजराती, राजस्थानी, हिन्दी) में विशाल काव्य-साहित्य की रचना की है।
जैन-काव्य-साहित्य में ऋषभादि 24 तीर्थंकरों के समुदित तथा पृथक्-पृथक् अनेक नूतन चरित, भरत, सनतकुमार, ब्रह्मदत्त, राम, कृष्ण, पाण्डव, नल आदि चक्रवर्तियों एवं नरेशों के विविध प्रकार के आख्यान, नाना प्रकार के साधु-साध्वियों, राजा-रानियों, श्रमणों, सेठ-सेठानियों, धनिकों, दरिद्रों, चोर और जुआड़ियों, पुण्यात्मा-पापात्माओं एवं नाना प्रकार के मानवों को उद्देश्य करके लिखे गये कथा-ग्रन्थ हैं।
आधुनिक साहित्य में वर्णित महावीर चरित . प्राचीन युग में भगवान महावीर पर प्राकृत, अपभ्रंश और संस्कृत तथा राजस्थानी एवं अन्य प्रांतीय भाषाओं में अनेकानेक ग्रन्थ लिखे गये। उनमें वर्तमान में हिन्दी, गुजराती व आंग्लभाषा में शोधप्रधान व जनसाधारण के उपयोगी बहुत से ग्रन्थ प्रकाशित हुये हैं, जो निम्न प्रकार हैं - श्री महावीरस्वामी चरित्र'
महावीरस्वामी चरित का प्रथम संस्करण 1925 में प्रकाशित हुआ था। लेखक ने त्रिषष्टिश्लाकापुरूषचरित का मुख्य आधार लिया है।