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________________ 8 वीरोदय महाकाव्य और भ. महावीर के जीवनचरित का समीक्षात्मक अध्ययन परिच्छेद-2 प्राकृत काव्यों में वर्णित चरित - परम्परा प्राकृत - साहित्य का प्रादुर्भाव धार्मिक क्रान्ति से हुआ है। अतः आगम सम्बन्धी मान्यताओं का प्राप्त होना और तत्सम्बन्धी साहित्य का प्रचुर रूप में लिखा जाना स्वाभाविक है । इस साहित्य में लौकिक - साहित्य के बीज - सूत्र वर्तमान है, जिनके आधार पर प्रबन्धात्मक काव्य एवं कथा - साहित्य के विकास की परम्परा स्थापित की जा सकती है। बीज - सूत्रों के आधार पर चरित - काव्यों का प्रणयन कवियों ने किया है। संस्कृत के चरित - काव्यों का मूल स्रोत जिसप्रकार वेद हैं उसी प्रकार प्राकृत के चरित - काव्यों का मूल स्रोत आगम - साहित्य है । वस्तुतः चरित - काव्य प्रबन्ध काव्य की ही एक रूप-योजना है जहाँ पात्र पौराणिक - ऐतिहासिक हैं और वे कालक्रम के तिथिगत एवं तथ्यगत व्योरों से भी पुष्ट हैं। साहित्य-विधाओं के विकास पर दृष्टिपात करने से ज्ञात होता है कि कथा -- वर्णन एवं आचार - विषयक मान्यताओं के अनन्तर ही चरित - काव्य का सृजन आरम्भ हुआ है । चरित - काव्य का मूल, आगम और पुराणों में है । प्राकृत चरितों की कथावस्तु राम, कृष्ण, तीर्थंकर या अन्य महापुरूषों के जीवन - तथ्यों को लेकर निबद्ध की गयी है । 'तिलोयपण्णत्ती' में चरित - काव्यों के प्रचुर उपकरण वर्तमान हैं। कल्पसूत्र एवं जिनभद्र - क्षमाश्रमण के विशेषावश्यक - भाष्य में चरित काव्यों के अर्ध-विकसित रूप उपलब्ध हैं । विमलसूरि का पउमचरियं वर्द्धमानसूसरि का आदिनाथचरित, सोमप्रभ का सुमतिनाथ चरित, देवसूरि का पद्यप्रभस्वामी चरित, यशोदेव का चन्द्रप्रभचरित, अजितसिंह का श्रेयांसनाथ चरित, नेमिचन्द्र का अनन्तनाथचरित, देवचन्द्र का शान्तिनाथचरित, जिनेश्वर का
SR No.006158
Book TitleViroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamini Jain
PublisherBhagwan Rushabhdev Granthmala
Publication Year2005
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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