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प्रवणधर्म में तीर्थकर परम्परा और भ. महावीर तथा महावीर चरित-साहित्य...... 9 मल्लिनाथ चरित, श्रीचन्द्र का मुनिसुव्रतचरित एवं नेमिचन्द्र का रयणचूड़ारायचरित प्रसिद्ध चरितकाव्य हैं। चरित-काव्य की यह परम्परा संस्कृत और अपभ्रंश भाषाओं में भी वर्तमान हैं। प्राकृत में कुछ ऐसे भी चरित-काव्य हैं, जिनके नायक न तो पौराणिक पुरूष हैं और न ऐतिहासिक या अर्धऐतिहासिक ही। आख्यानों में अलंकरण से तत्त्वों का समावेश कर चरित-काव्यों को पूर्ण सरस बनाया गया है। यहाँ कुछ चरित-काव्यों का अनुशीलन प्रस्तुत किया जा रहा है।' तिलोयपण्णत्ती में महावीरचरित
दिगम्बर मान्यता के अनुसार महावीर के जीवन-सूत्र 'तिलोयपण्णत्ती' में हैं। वहाँ पर इतना ही लिखा गया है- तीर्थकर वर्धमान कुण्डनपुर में पिता सिद्धार्थ और माता प्रियकारिणी से चैत्र शुक्ला त्रयोदशी के दिन उत्त्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में उत्पन्न हुए। मार्गशीर्ष कृष्णा दशमी के दिन अपराह्न में उत्तरानक्षत्र में रहते नाथवन में तृतीय उपवास के साथ महावृतों को ग्रहण किया। यह ग्रन्थ प्राकृत भाषा में है। यथा -
मग्गसिर–बहुल-दसमी-अवरण्हे, उत्तरासु णाथ-वणे। तदिय – खमणम्मि गहिदं, महव्वदं वड्ढमाणेण।।
त्रिलोय. प. भा. 2/4/674 पउमचरियं
संस्कृत-साहित्य में जो स्थान बाल्मिीकि रामायण का है, प्राकृत में वही स्थान पउमचरियं का है। इसके रचयिता विमलसूरि नाम के
जैनाचार्य है। ये आचार्य राहु के प्रशिष्य, विजय के शिष्य और नाइलकुल . के वंशज थे। प्रशस्ति में इनका समय ई. सन् प्रथम शती है, पर ग्रन्थ के अन्तः परीक्षण से इसका रचना काल ई. सन् 3-4 शती प्रतीत होता है। इस ग्रन्थ में महाराष्ट्री प्राकृत का परिमार्जित रूप विद्यमान है। विषय-वस्तु
पउमचरियं विमलसूरिकृत है। अयोध्या नगरी के अधिपति महाराज दशरथ की अपराजिता और सुमित्रा दो रानियाँ थीं। “सीता' के निमित्त