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श्रमण, वर्ष ५५, अंक १-६/जनवरी-जून २००४
इसके अतिरिक्त हरिभद्रसूरि, पद्मप्रभसूरि, चन्द्रम, सिद्धसेन, महेन्द्रसूरि, मलयेन्दु सूरि, बुलाकीचन्द्र, बुलाकीदास आदि ने भी महत्वपूर्ण जैन ग्रंथों की रचना की है। इनके अतिरिक्त हमें अनेक ऐसे ग्रंथों के सन्दर्भ भी उपलब्ध साहित्य में प्राप्त होते हैं जो वर्तमान में तो प्राप्य नहीं हैं किन्तु पूर्व में उपलब्ध थे।
सुविधा की दृष्टि से हम सम्पूर्ण उपलब्ध एवं अनुपलब्ध जैन गणितीय साहित्य को ६ वर्गों में विभाजित कर सकते हैं।
१. पूर्णत: गणितीय एवं जैनाचार्यों द्वारा लिखित ऐसे ग्रन्थ जिनका अनुवाद एवं आलोचना प्रकाशित हो चुकी है जैसे महावीराचार्य कृत गणितसार संग्रह, आचार्य श्रीधरकृत 'पाटी गणित' एवं त्रिंशतिका, सिंहतिलकसूरि कृत 'गणितंतिलक टीका' (मूललेखक-श्रीपति)।
२. ऐसे ग्रन्थ जो पूर्णत: गणितीय हैं एवं अब तक उनका मात्र मूलपाठ ही प्रकाशित हो पाया है। जैसे- ठक्कर फेरु कृत गणित कौमुदी, लालचन्द्र कृत लीलावती एवं अंक प्रस्तार।
३. कतिपय ग्रंथों की पाण्डुलिपियाँ तो लेखक को प्राप्त हो गई हैं किन्तु मूलपाठ एवं आलोचनात्मक अध्ययन अद्यतन अप्रकाशित हैं। जैसे - माधवचन्द्र विद्यकृत षट्त्रिंशिका, हेमराज (गोदीका) कृत गणितसार एवं लोंकागच्छीय तेजसिंह सूरि कृत इष्टांकपंचविंशतिका।
४. इस वर्ग के अन्तर्गत वे ग्रन्थ आते हैं जिनकी पाण्डुलिपियाँ देश के विभिन्न शास्त्र भण्डारों में सुरक्षित हैं किन्तु लेखक को इन्हें देखने का अवसर नहीं मिला जैसे महिमोदयकृत गणितसार साठसौ, आनन्द कवि कृत गणितसार, गणिविद्यापण्णत्ति, गणितसंग्रह, क्षेत्रगणित, क्षेत्रसमास, गणितविलास, गणितकोष्ठक, पुद्गल भंग एवं वृत्ति। इनके बारे में विस्तृत जानकारी लेखक ने अपने आलेख 'जैन गणितीय साहित्य' १३ में दी है।
५. इस वर्ग में उन ग्रन्थों को लिया जा सकता है जिनका उल्लेख विभिन्न ग्रन्थों में विभिन्न प्राचीन एवं अर्वाचीन लेखकों ने किया है किन्तु उनकी पाण्डुलिपियाँ वर्तमान में उपलब्ध नहीं है यथा वृहद्धारापरिकर्म, सिद्धभूपद्धति एवं उसकी टीका, करणसूत्र, करणभावना, अनन्तपालकृत पाटीगणित, महावीराचार्य कृत छत्तीसपूर्वा प्रतिउत्तरप्रतिसह, क्षेत्रगणित, त्रिशंति, क्षेत्रसमास, क्षेत्रसमास बालावबोध आदि। इनका विवरण भी 'जैन गणितीय साहित्य' लेख में उपलब्ध है।१४
६. प्राकृत भाषा में रचित वर्तमान में अनुपलब्ध गणितीय ग्रन्थों की विस्तारपूर्वक चर्चा लेखक के आलेख 'कतिपय अज्ञात जैन गणित ग्रन्थ १५ अथवा प्राकृत भाषा
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