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२८ :
श्रमण, वर्ष ५५, अंक १-६/जनवरी-जून २००४
n(n-1)
1.2
"c, = 2
n(n-1)(n-2)
1.2.3
"P) = n, "P2 = n(n-1) "p, = n(n-1)(n-2)
उपरांत लिखा है कि इसी प्रकार ५,६,७.........१० संख्यात, असंख्यात के सन्दर्भ में इनका मान ज्ञात किया जा सकता है। अनुयोगद्वारसूत्र की मलधारी हेमचन्द्रसूरि कृत टीका से स्पष्ट है कि व्यापक सूत्र
___"p, =n! का ज्ञान इसकी उपपत्ति सहित जैनाचार्यों को था। महावीराचार्य (८५० ई०) ने n वस्तुओं में से r के चयन का व्यापक सूत्र दिया है।२३ ne _ n(n - 1)(n - 2).........(n-T-1)
1.2.3..........
n!
आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्तक्रवर्ती कृत गोम्मटसार में भी भंग संज्ञा से इस विषय का सुन्दर एवं व्यावहारिक विवेचन मिलता है।
(१०) श्रेणियों के सन्दर्भ में जैनाचार्यों का योगदान अद्वितीय है। तिलोयपण्णत्ती, श्रीधराचार्य की त्रिशंतिका, महावीराचार्य कृत गणितसारसंग्रह, त्रिलोकसार आदि १०वीं श०ई० के पूर्व के ग्रंथों में एवं ठक्कर फेरु की गणितसारकौमुदी में श्रेणियों का व्यापक प्रयोग उत्कृष्टता के साथ उपलब्ध है। किन्तु इन सबमें महावीराचार्य एवं आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती का योगदान सर्वोच्च है।
तिलोयपण्णत्ती में समान्तर एवं गुणोत्तर श्रेणी के n पदों का योगफल, प्रथम पद, सर्वन्तर आदि निकालने के १० सूत्रों का प्रयोग विविध प्रकरणों में प्रत्यक्ष/परोक्ष रूप से मिलता है।
महावीराचार्य ने समानान्तर एवं गुणोत्तर श्रेणी के वर्तमान में प्रचलित नियमों को तो निर्दिष्ट किया ही है किन्तु रूपान्तरित समानान्तर एवं गुणोत्तर श्रेणियों तथा मिश्र श्रेणियों के उपचार की तकनीकों को विकसित कर अपनी विशिष्ट प्रतिभा का परिचय दिया है।
आपने किसी गुणोत्तर श्रेणी के प्रत्येक पद में एक निश्चित राशि जोड़ने से बनने वाली श्रेणी n प्राकृतिक संख्याओं, प्राकृतिक संख्याओं के वर्गों, प्राकृतिक संख्याओं के घनों, श्रेणी जिसका प्रत्येक पद प्राकृतिक संख्याओं का योग है, सतत् श्रेणियों
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