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गाहा :
तुम्भेहिं अणुनाओ गंतूणं ताय ! अन्न-देसम्मि ।
विढवामि भूरि-दव्वं इय इच्छा संपयं मज्झ ।।२२५।। छाया :
युवाभ्या-मनुज्ञातः गत्वा तात! अन्यदेशम् ।
अर्जयामि भूरि-द्रव्यमिति इच्छा साम्प्रतम् मम ।।२२५॥ अर्थ :- “हे पिताजी ! आपनी अनुज्ञाथी अन्यदेशमा जईने घणा धननी प्राप्ति करूं ए प्रमाणे हमणा मारी इच्छा छ। हिन्दी अनुवाद :- "हे पिताजी ! आपकी अनुज्ञा से अन्यदेश में जाकर बहुत धन कमाऊँ ऐसी मेरी इच्छा है! गाहा :
ता अणुजाणउ ताओ पुज्जंतु मणोरहा इमे मज्झ ।
गच्छामि अन्न-देसं वणिज्ज-बुद्धीए सयमेव ।।२२६।। छाया ::
तस्मादनुजानातु तातः पूर्यन्तां मनोरथाः इमे मम ।
गच्छामि अन्य-देशं वाणिज्य-बुद्ध्या स्वयमेव ॥२२६॥ अर्थ :- तेथी हे पिताजी ! आप मने अनुज्ञा आपो अने मारा मनोरथ पूर्ण करो, जेथी बीजा देशमां जईने वणिक्बुद्धि वड़े स्वयम ज धन उपार्जन करू।" हिन्दी अनुवाद :- अतः हे पिताजी ! आप मुझे अनुज्ञा दीजिए और मेरे मनोरथ पूर्ण कीजिए, जिससे अन्य देश जाकर वणिक्बुद्धि से मैं स्वयं धनोपार्जन करूँ।" गाहा :
___ अनुज्ञा माटे माता साथे वार्तालाप भणियं जणणीए तओ गमणय-वयणंपि दुस्सहं पुत्त ? । ___ अच्छउ ता दूरे च्चिय पुण गमणं अन्न-देसम्मि ॥२२७।। छाया :
भणितं जनन्या ततो गमनक-वचनमपि दुःसहं पुत्र !!
आस्तां तस्माद्र-एव पुन र्गमनमन्यदेशम् ॥२२॥ अर्थ :- त्यारे माताट का, “हे पुत्र तारी जवानी वात पण दुःसह छे। तो पछी अन्यदेशमां गमन करवु ए तो दूर ज रहो। (अर्थात् तेनाथी सर्यु) हिन्दी अनुवाद :- तब माता ने कहा - "हे पुत्र ! तेरी यह जाने की बात भी दुःसह है तो फिर अन्य देश में गमन करने की बात तो दूर ही रही। गाहा :
अन्नं च अस्थि लच्छी तुह जणएणावि अज्जिया पुत्त ! ।
जीए विलसंतोवि हु अंतं काउं न सत्तो सि ।।२२८।। छाया:
अन्यच्चास्ति लक्ष्मीः तव जनकेनाप्यर्जिता पुत्र ! । यस्या विलसन्नपि ननं अन्तं कर्तुं न शक्तोऽसि ||२२८॥
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