Book Title: Sramana 2004 01
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 293
________________ ११ यदि आभरणों के वर्ण तवर्ग-प्रचर वर्गों से संश्लिष्ट हों, तो वह आभूषण रत्ननिबद्ध है। भाजन के वर्षों से वे ही वर्ण संश्लिष्ट हों तो वह भाजन भी रत्ननिबद्ध है।।५५॥ जइ पउरउत्तरद्धं ता रयणं सुद्धजाइयं मुणहु। तं अहरक्खरबद्धं कित्तिमयं मीसिए मिस्स।।५६।। यदि प्रश्न में उत्तराक्षर प्रचुर हों तो उस रत्न को शुद्ध जाति का समझो। यदि वह प्रश्न अधराक्षरों में हो तो उसे (रत्न को) कृत्रिम जानो और मिश्रित अक्षर हों तो मिश्रित जाति का जानो।।५६।। उत्तम-मज्झिम-अधमा हंति य णाणा तहा जहासंखं। आलिंगियाहिधूमियदढ्डयपत्तेहिं पण्हेहिं।। ५७।। आलिंगित. अभिधमित और दग्ध वर्गों के होने पर क्रमश: उत्तम, मध्यम और अधम नाणक, टंक और शिवांक आदि सिक्के होते हैं।॥५७।। पढमं तरूण वण्णा तह ससि-गहसंमिओ सरो चेव। क-च-टादुआण (?°ण दुइय) वण्णा दसमओ दुज्जो सरो वेवि।। ५८।। क, च आदि सातों वर्गों के प्रथमाक्षर तथा प्रथम और नवम स्वर - ये वृक्षों के वाचक हैं। क, च, ट, ख, छ, ठ एवं दशम और द्वितीय स्वर दोनों (लता और वृक्ष = द्विक) के वाचक हैं।। ५८|| रिउ-बाण-रुद्दसरओ पंचमवण्णा तिणाइ जंपंति। सेसदुइज्जा वपणा वल्लीं वग्गाण चत्तारि।।५९।। षष्ठ, पंचम, एकादश स्वर और सभी वर्गों के पंचम वर्ण तृणों को बताते हैं। शेष तवर्ग, पवर्ग, यवर्ग और शवर्ग के द्वितीयाक्षर वल्ली को व्यक्त करते हैं।।५९।। अट्ठम-चउअं तिसरा चउत्थवण्णेण ठाइआ तिण्णि। जंपंति ख-छ-ठ-फाओ जाइविसेसाई गुम्माई।।६।। कवर्गादि सप्त वर्गों के चतुर्थ वर्ण के साथ स्थापित अष्टम, चतुर्थ और अन्तिम तीन स्वर तथा ख, छ, ठ एवं फ जाति-विशेष के गुल्म बताते हैं।।६०॥ ग-ज-डेहिं होति य लया सालादि सत्तमसरेहिं गहिएहि। गहिएहिं दबलसेहिं प (घ?) ण्णापहुदीनि जाणेह।।६१।। सप्तम स्वर से युक्त ग, ज और ड वर्गों का ग्रहण होने पर लता शालादि और द, ब, ल एवं स का ग्रहण होने पर धान्य प्रभृति जानो।।६१॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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