Book Title: Sramana 2004 01
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 292
________________ प्रश्न में उत्तर वर्णों का प्राधान्य नित्य गढ़ी हुई धातु को प्रकाशित करता है। और अधराक्षर न गढ़ी हुई धातु को बताता है - यह सत्य है।।४८।। आलिंगिएहिं जाणह कंकणकेऊरपहुदि आहरणं। अहरक्खरेहिं गढिअं कच्चोलयपहुति भायणयं।। ४९।। आलिंगिताक्षरों से कंकण-केयूर-प्रभृति आभूषण समझो और अधराक्षरों से गढ़े हुये कचोलक प्रभृति बर्तन।।४९।। उत्तरवण्णपहाणं पण्हे दरिसेइ अहिणवाहरणं। अहरक्खर अपहाणं उवभुत्तं णत्थि संदेहो।।५०।। प्रश्न में उत्तरवर्ण का प्राधान्य अभिनव आभूषण प्रदर्शित करता है तथा अधराक्षरों का अप्राधान्य उपभुक्त आभूषण।।५०॥ सब्बे उत्तरवण्णा भवंति सुरलोअलोअणाहरणं। अहरक्खराइ णूणं माणवलोयस्स जंतूणं।। ५१।। सभी उत्तरवर्ण सुरलोक वासियों के आभूषणों के प्रकाशक हैं और अधराक्षर निश्चय ही मानव-लोक के जन्तुओं के आभूषणों के।।५१॥ दुप्पयवण्णा पण्हे दुप्पअजंतूण पण्हे दुप्पअजंतूण चवइ आहरणं। सो वि णर-णारयाणं विहगाणं विहगवण्णेहिं।। ५२।। प्रश्न में द्विपदवर्ण द्विपद जन्तुओं के आभूषण बताते हैं, वे ही नरों और नारकों के आभूषण बताते हैं और विहगवर्ण विहगों के आभूषण।।५२।। जड़ व चउप्पवण्णा पण्हे लद्धाइं हुंति पउराई। मा करहु इत्थ भंती जाणिज्ज, चउप्पयाहरणं।। ५३।। यदि प्रश्न में प्रचुर चतुष्पद वर्ण मिल रहे हों, तो यहाँ भ्रम मत करो, चतुष्पद . का आभूषण जान लो।।५३॥ दिस-कुच-वेयट्ठमया सरया दरिसंति उद्धआहरणं। ससि-तिय-गह-सत्तमया मज्झंगे सेस अद्धाणं।। ५४।। दशम, द्वितीय, चतुर्थ एवं अष्टम स्वर शरीर के ऊपरी भाग के आभूषण दर्शाते हैं और प्रथम, तृतीय, नवम तथा सप्तम शरीर के मध्य भाग के। शेष स्वर शरीर के अधोभाग के आभूषणों को सूचित करते हैं।॥५४।। आहरणाण य वण्णा संसिट्ठा हुंति जई य त-पउरा। ता तं रयणणिबद्धं भायणयं ताण वण्णेहि।। ५५।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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