Book Title: Sramana 2004 01
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 291
________________ तंबं च तइओ सरओ पंचमहीणो वउत्थओ वग्गो । लोहं दसम सरओ अट्ठमवग्गी मकारो य । । ४१ । । पंचमाक्षररहित चतुर्थ वर्ग और तृतीय स्वर ताँबा प्रकट करते हैं और दशम स्वर अष्टम वर्ग के वर्ण तथा मकार लोहा । । ४१ ।। वंगं तइओ वग्गो पंचमहीणो कवग्गपंचमओ । अठ्ठम पंचमसरओ पण्हे लदो पयासेइ । । ४२ ।। प्रश्न में पंचमाक्षर - रहित तृतीय वर्ग, कवर्ग का पंचम वर्ण तथा अष्टम और पंचम स्वर मिलने पर वे वंग (राँगा) को प्रकट करते हैं || ४२ ॥ छदुसरो एकतो पंचमवण्णो अ तईयवग्गस्स । । जइ पाविज्जइ पण्हे ता णूणं सीसअं मुणह । । ४३ । । षष्ठ स्वर अकेला, तृतीय वर्ग का पंचम वर्ण- ये यदि प्रश्न में मिलें तो निश्चित ही सीसा जानों ॥ ४३ ॥ न-प-फ-म-भाऊ वण्णा पण्हे लद्धा कुणंति पित्तलयं । ण-त-था द-धा- इ-आरा कंसं ण हु अत्थि संदेहो । । ४४ ।। प्रश्न में न, प, फ, भ, और ऊ के आने पर वे पीतल की सूचना देते हैं। ण, त, थ, द, ध और इ - ये वर्ण काँसे को सूचित करते हैं इस में सन्देह नहीं है || ४४ ॥ कणयक्खरं पयासइ मरगयमाणिक्कपहुइरयणाई । मुत्ताहीरयपहुई तारक्खरयं ण संदेहो । १४५ ।। कनकाक्षर मरकत - माणिक्य-प्रभृति रत्नों को और ताराक्षर (रजताक्षर) मुक्ताहीरक - प्रभृति को प्रकाशित करते हैं इस में सन्देह नहीं है ॥ ४५ ॥ कक्करतालयपहुदिं (तं) वक्खरयं (च) भणइ जो चित्तं । लोहक्खरेहिं जाणह रयणाइं इंदनीलपहुदीणि । । ४६ । । ताम्राक्षर कर्कट - तालक प्रभृति को बताते हैं - इस में आश्चर्य नहीं है। लौहाक्षरों से इन्द्रनील प्रभृति रत्नों को जानों ॥ ४६ ॥ कंसक्खरं पयासइ रयणऽसेसाई काचपहुदीणि । सेसं सीसययहुदिं पित्तलसीसाइ अक्खरयं । । ४७ ।। कांस्याक्षर काँचादि समस्त रत्न - विशेष को प्रकाशित करते हैं, तथा शेष पित्तलाक्षर और शीसकाक्षादि शीसक-प्रभृति रत्न विशेष को ॥ ४७ ॥ उत्तरवण्णपहाणं पण्हे गडियं पयासए णिच्वं । धाउमगढिअं अहरं Jain Education International · स्वरयं भणइ सच्चमियं । । ४८ । । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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