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जल-साहारण-जंगलदेसपभूयं चवंति भूरुहय।। आलिंगिय-अहिधूमिय-दडववण्णा जहासंखं।।६२।।
आलिंगित, अभिधूमित और दग्ध वर्ण क्रमश: जलीय-वनस्पति, साधारणवनस्पति और जंगल देश में भूमि पर उत्पन्न वृक्ष को बताते हैं।।६२॥
तरवो हुंति असोया संणिहिया उत्तरेहिं वण्णेहि। अधरसरोहिं अधमा पण्हे पडिएहिं दूरट्ठा।।६३।।
प्रश्न में पड़े उत्तर वर्णों से अशोकादि वृक्ष सनिहित होते हैं और अधर स्वरों से दूर स्थित अधम वृक्ष (शाखोटादि)।।६३।।
संजुत्त-असंजुत्ता जहाकम लद्ध (पण्ह) वण्णेहिं।
फलियाफलिया तरुणो केवलिनाणेण भासंति।।६४।। , प्रश्न में प्राप्त संयुक्त और असंयुक्त वर्ण केवली के ज्ञान के द्वारा क्रमश: फलित एवं अफलित वृक्षों को कहते हैं।।६४॥
तह दिवस-मास-पक्खय पुणो वि मासे वि तह य वच्छरए। जहसंखं लाहसुहं एसु य सयलेसु वग्गेसु।।६५।।
सभी सातों वर्गों के प्रथम, द्वितीय, तृतीय; चतुर्थ एवं पंचम वर्ण क्रमश: उसी दिन, मास, पक्ष, मास और वर्ण के लाभ तथा सुख का ज्ञान कराते हैं। (प्रथमाक्षर से उसी दिन के, द्वितीय से महीने भर के, तृतीयाक्षर से पक्ष भर के, चतुर्थ से फिर महीने भर के और पंचमाक्षर से वर्ष भर के सुख और लाभ जाने जाते हैं।)॥६५॥
उत्तरवण्णपहाणो उत्तरअयणं पयासए पण्हे। अहरक्खरेसु पण्हे दक्खिणअयणं ण संदेहो।।६६।।
प्रश्न में उत्तर वर्ण का प्राधान्य होने पर वह उत्तरायण को प्रकाशित करता है और अधराक्षरों का प्राधान्य दक्षिणायण को - इस में सन्देह नहीं है।।६६।।
पढमक्खरेण सिसिरो महु वि तहा वीयएण वण्णेण। तीयक्खरेण गिम्हो चउथेण य पाउसो होइ।।६७।।
कवर्गादि सप्तवर्गों में प्रथमाक्षर से शिशिर, द्वितीयाक्षर से वसन्त, तृतीयाक्षर से ग्रीष्म और चतुर्थाक्षर से वर्षा ऋतु का बोध होता है।।६७।।
सत्तमसरेहिं सरओ कहिओ अणुणासिएहिं हेमंतो। अं अ (?) इ उ अक्खरयं पयासियं जिणवरिंदेण।।६८।।
सप्तम स्वर से युक्त अनुनासिक वर्णों (ङ, ञ, ण, न, म) के द्वारा शरद् कहा गया है। अं, अः, इ और उ से हेमन्त होता है - यह जिनेन्द्र ने प्रकाशित किया है।।६८।।
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