Book Title: Sramana 2004 01
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 295
________________ १३ होइ च-टेहिं चित्तो देसाहो होइ ग-ज-डवण्णेहि। जिट्ठो वि द-ब-ल-सोहिं ई ओ घ-झ-डेहिं आसाढो।।६९।। च और ट से चैत्र ग, ज और ड से वैशाख, द, ब, ल और स वर्षों से ज्येष्ठ और घ, झ एवं ढ वर्गों से आषाढ़ होता है।।६९।। णहु होइ ध-भ-द-हेहिं सर-रिउसर-ड-ज-णेहिं भद्दवओ। ए ऊ बिन्दु-विसग्गा सेसयवण्णेहिं आसिणओ।।७।। ध, भ व एवं ह से श्रावण, पंचम और षष्ठ स्वरों के साथ ङ, ब और ण से भाद्रपद तथा ए, ऊ, बिन्दु, विसर्ग और शेष वर्गों से आश्विन मास होता है।।७०।। तह त-प कत्तिकमासो कहिओ पढमेहिं दोहिं वण्णेहि। य-शवण्णेहिं वि दोहिं मियसरणामो य मासो य।।७१।। तवर्ग और पवर्ग के प्रथम दोनों वर्ण - त और प से कार्तिक मास और य एवं श - इन दो वर्णों से मार्गशीर्ष नामक मास कहा गया है।।७।। आ ई ख-छ-ठेहिं सहो थ-फ-र-षवण्णेहिं होइ तह माहो। फग्गुणमासो ससि-मुणिसरएहिं तह कवग्गेण।।७२।। आ, ई, ख, छ एवं ठ से पौष; थ, फ, र तथा ष से माघ और प्रथम एवं सप्तम स्वरों और कवर्ग से फाल्गुन मास कहा गया है।।७२।। दो तिनि पंच अट्ठा पंच य अट्ठा य तह य दो तिन्नि। चारिक्क सत्त छक्का सत्त च्छक्का य चारिक्का।।७३।। दो, तीन, पाँच, आठ, पाँच, आठ, दो, तीन, चार, एक, सात, छह, सात, छह, चार, एक।।७३॥ १८ १८ २ ३ ५ ८ = १८ ५ ८ २ ३ = १८ ४१ ७६ = १८ ७ ६ ४ १ = १८ १८ १८ १८ १८ १८ __१८ इति ज्ञानदीप समाप्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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