Book Title: Sramana 2004 01
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 271
________________ हिन्दी अनुवाद :- इसीलिए कहा गया है कि पिता की अर्जित लक्ष्मी का कौन विलास करता नहीं है ? (अर्थात् सब जन करते हैं) किन्तु स्वयं की अर्जित लक्ष्मी से विलास करने वाले विरलपुत्र को क्वचित् नारी ही जन्म देती है।" गाहा : एवं जण-प्पवायं निसुणित्ता चिंतई उ धणदेवो । सच्चं भांति एए न हु जुत्तं मज्झ एरिसयं ।।२२२।। छाया: ___एवं जन-प्रवादं निःश्रुत्य चिन्तयति तु धनदेवः । सत्यं भणन्ति एते न खलु युक्तं ममेद्रशम् ।।२२२॥ अर्थ :- आ प्रमाणे लोकोना प्रवाद सांभळीने धनदेव विचारे छे के “आ लोको साधु कहे छे। खरेखर मारे आ प्रमाणे करतुं योग्य नथी।" हिन्दी अनुवाद :- इस प्रकार लोकोक्ति सुनकर धनदेव सोचता है कि "ये लोग सत्य कहते हैं, मुझे इस प्रकार नहीं करना चाहिए। गाहा :- धनदेवनी व्यापारार्थे परदेश गमन इच्छा ता पर-देसं गंतुं विढवित्ता भूरि-भूइ पब्भारं । विलसामि जहिच्छाए दीणाऽणाहाण अविसंको ।।२२३॥ छाया: तस्मात् पर-देशां गत्वा अर्जित्वा भूरि-भूति-प्राग्भारम्। विलसामि यथेच्छया दीनानाथानां अविशांकः ॥२२३॥ अर्थ :- तेथी परदेशमा जईने पुष्कळ वैभव कमाईने यथेच्छ रीते दीन-अनाथोने दान आपी निशंकित एवो हुँ लक्ष्मी नो विलास करीशा।" हिन्दी अनुवाद :- अतः परदेश जाकर विपुलधन प्राप्त करके इच्छानुसार दीन-अनाथों को दान देकर निशंकता से मैं लक्ष्मी का विलास करूंगा।" गाहा :- माता पिता पासे परदेश माटे जवानी अनुज्ञा इय चिंतिय धणदेवो माउ-पिऊणं सगाससमागम्म । विणय-पणउत्तमंगो कयंजली भणिउमाढत्तो ॥२२४।। छाया: इति चिन्तयित्वा धनदेवो मातृ-पित्रोः सकाशामागत्य। विनय-प्रणतोतमाङ्गः कृतानविः भणितुमारब्धः ॥९९४॥ अर्थ :- धनदेवे आ प्रमाणे विचारीने माता-पितानी पासे आवीने विनयधी नमेला-मरतकवाळो, जोडेली अञ्जलिवालो कठेवा माटे प्रारम्भ कर्यु। हिन्दी अनुवाद :- इस प्रकार सोचकर माता-पिता के पास आकर विनय से नम्र मस्तकवाला, अञ्जलिबद्ध होकर धनदेव कहने लगा। 65 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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