________________
आलिंगिएहिं संधी ण हु संधी विग्गहे (हो) ण अहरेहिं । अहराहरेहिं कहिओ समरो सुहडाण णासयरो । । २१ । ।
आलिंगिताक्षरों से सन्धि होती है, अधराक्षरों से न सन्धि होती है, न विग्रह तथा अधराधर अक्षरों से सुभटों का नाश करने वाला युद्ध बताया गया है ।। २१ ।। विजयं उत्तरवण्णे ण जयं ण पराजयं वि अहरेहिं ।
अहराहरो पयासइ पराजयं णत्थि
संदेहो । । २२ ।।
उत्तर वर्ण विजय को प्रकट करता है । अधर वर्णों से न विजय सूचित होती है, न पराजय । अधराधर वर्ण पराजय प्रकाशित करता है - इस में सन्देह नहीं है । २२ ॥
जइ पढमक्खरमहरं अवसाणे उत्तरक्खरं पण्हे ।
ता उत्तरो सुवलिओ विवरीओ ताण विवरीयं ।। २३ ।।
जय और पराजय के प्रश्न में यदि प्रथमाक्षर अधर हो और अन्त में उत्तराक्षर आया हो, तो उत्तराक्षर बलवान होता है। इस के विपरीत ( प्रथम उत्तराक्षर हो और अन्तिमाक्षर अधर हो तो) विपरीत फल होता है । ( अर्थात् अधराक्षर बलवान होता है ॥२३॥
पढमसरेण य जुत्ता पण्हे मत्ताविवज्जिया वण्णा । अणभिहिअणामआ दे पअडंति य जीवचिंताई । । २४ । ।
प्रथम स्वर (अ) से युक्त एवं अन्य मात्राओं से रहित वर्ण प्रश्न में अनभिहित संज्ञक होते हैं। ये जीव - चिन्ता को प्रकट करते हैं ||२४||
ससि तइस पंच सत्तम नवमसरा रुद्दसंखसरसहिया ।
-
-
क-च-टा पंचमहीणा सहिया य स हेहिं जीवक्खा । । २५ ।।
-
प्रथम, तृतीय, पंचम, सप्तम, नवम स्वर और एकादश स्वर के साथ पंचम वर्ण को छोड़ कर कवर्ग, चवर्ग, टवर्ग, यकार, सकार और हकार इन सब इक्कीस वर्णों की जीव संज्ञा है ।। २५ ॥
बीओ छट्टो सरओ सविसग्गो तह व सक्खरोपेओ ।
तह उण पंचमहीणा त पवग्गा धाउणामा उ । । २६ ।।
द्वितीय और षष्ठ स्वर, विसर्ग, सकार एवं पंचम वर्ण को छोड़ कर तवर्ग और पवर्ग के शेष वर्ण ये सब तेरह अक्षर धातु - संज्ञक हैं ।। २६ ।।
ई ऐ औ सरजुत्ता र ल षा ङ- ञ-ण-न- - माई वण्णाई | एआरह मूलक्खा पयासिया जिणवरिंदेण । । २७ ।।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org