Book Title: Sramana 2004 01
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 287
________________ प्रश्न में आलिंगित वर्षों से अतिधान्योत्पत्ति होती है। अभिधमिताक्षरों से अल्प होती है और दग्धाक्षरों से नष्ट हो जाती है। (अर्थात् धान्योत्पत्ति नहीं होती है।) इस में कोई आश्चर्य नहीं हैं।।१३।। संपदिकालं पण्हे वण्णो आलिंगिओं पयासेइ। अहिधूमिओ दि भूअं दड्डो उण भावियं णूणं।।१४।। प्रश्न में आलिंगित वर्ण वर्तमान काल, अभिधूमित वर्ण भूतकाल और दग्धवर्ण नि:संदेह भविष्यत् काल को प्रकाशित करता है।।१४।। तह पढम बीय तइआ वण्णा वच्चंति तिण्णि कालाई। मा इत्य करह भंती जहसंखं सयलवग्गाणं।।१५।। सभी वर्गों के प्रथम, द्वितीय और तृतीय वर्ण (अक्षर) क्रमश: तीनों कालों को बताते हैं। इस में भ्रम न करो।।१५।। अलिंगिएहिं मुक्कइ वाहिं अहियूमिएहिं ण हु रोई। अहवा चिरेण कहूं दडो मरणं पयासेइ।।१६।। आलिंगित वर्षों से रोगी व्याधि से मुक्त होता है। अभिधूमित वर्गों से मुक्त नहीं होता है अथवा देर से मुक्त होता है। दग्ध वर्ण मृत्यु को प्रकाशित करता है।।१६।। विसमा दाहिणपासे वामे य वणं समा य पयडंति। वण्ण पण्हे पडिया पंचमया बेवि पासंमि।।१७।। प्रश्नवाक्य में आये विषम वर्ण (वर्ग के प्रथम और तृतीय) दक्षिण पार्श्व में. समवर्ण (द्वितीय और चतुर्थ) वामपार्श्व में और पंचम वर्ण दोनों पार्थों में व्रण के प्रकाशक हैं।।१७॥ अट्ठ सिरो-मणि-वयण-हियय-कडि-उरु-जाणु-चरणजुयलेहि। " पण्हविलग्गा वग्गा वणाई दरिसति जहसंख।।१८।। प्रश्न में प्रथम निर्दिष्ट आठों वर्ग (अवर्ग, कवर्ग२, चवर्ग३, टवर्ग, तवर्ग', पवर्ग, यवर्ग और शवर्ग') क्रमश: शिर', ललाट२, मुख, हृदय, कटि५, उरूप, जानु और दोनों चरणों में व्रण प्रदर्शित करते हैं।॥१८॥ अणिलय-पित्तय सेफय-संसग्गय-अहिघाययं रोग। पयडंति पंचवग्गा जहसंखं पढम उद्दिट्ठा।।१९।। वर्गों के प्रथमोद्दिष्ट पाँच वर्ग क्रमश: वातज, पित्तज, श्लेष्मज, संसर्गज और अभिघातज रोग प्रकट करते हैं।।१९।। अइमंद-मज्झ-दारुणपीडाइं दिति पहपडिआइं। आलिंगियाहिधूमियदहा वण्णा जहासंखं।।२०।। आलिंगित, अभिधुमित और दग्ध वर्ण प्रश्न में आने क्रमश: अतिमन्द, मध्यम और दारुण पीडा को प्रकट करते हैं।।२०।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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