Book Title: Sramana 2004 01
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 285
________________ ज्ञानदीप (चूड़ामणिसार) नमिऊण जिणं सुरअणचूड़ामणिकिरणसोहिपयजुयलं। इय चूड़ामणिसारं कहिय मए जा (ना) णवीवक्खें।।१।। जिन के चरण-युगल सुरगणों की चूड़ामणियों की किरणों से शोभित हैं उन जिन देव (तीर्थकर) को नमस्कार कर इस ज्ञानदीपकारव्य चूड़ामणिसार का वर्णन करता हूँ।।१।। पढम-तईयं-सत्तम-रंधसरा-पढम-तईयवग्गवण्णाई। आलिंगियाइं सुहया उत्तर-संकडअणामाई।।२।। प्रथम, तृतीय, सप्तम और नवम स्वर (अ, इ, ए, ओ) तथा व्यंजन वर्ग के प्रथम तथा तृतीय वर्णक अर्थात् च, ट, प, य, श, ग, ज, ड, द, ब, ल, स की आलिंगित, सुभग, उत्तर और संकट संज्ञा है अर्थात् पूर्वोक्त सभी वर्ण आलिंगित, सुभग, उत्तर और संकट - इन चार नामों से जाने जाते हैं।।२॥ कुच-जुग-वसु-दिससरआ बीय-चउत्थाई वग्गवण्णाइं। अहियूमिआई मज्झ ते उण अहराइं वियडाई।।३।। द्वितीय, चतुर्थ, अष्टम एवं दशम - ये चार स्वर क्रमश: आ, ई, ऐ, औ तथा ख, छ, ठ, थ, प, र, ष, ध, झ, ढ, ध, भ, व, ह ये व्यञ्जन वर्ग के द्वितीय और चतुर्थ वर्ण वर्ण अभिधूमित, मध्य, अधर और विकट कहलाते हैं। अर्थात् पूर्वोक्त सभी वर्ण अभिधूमित, मध्य, अधर और विकट - इन चार नामों से जाने जाते हैं।।३।। सर-रिउ-रुद्द-दिवाअर-सराई वग्गाण पंचमा वण्णा दढ्डाइं वियड-संकड-अहराहर-असुहणामाई।।४।। पंचम, षष्ठ, एकादश और द्वादश स्वर अथात् उ, ऊ, अं, अ: - ये चार स्वर तथा ङ, ञ, ण, न, म - व्यञ्जन वर्ग के पंचमाक्षर - दग्ध, विकट - संकट, अधर और अशुभ कहे जाते हैं अर्थात् पूर्वोक्त सभी वर्ण दग्ध, विकट - संकट, अधर और अशुभ - इन चार नामों से जाने जाते हैं।॥४॥ सब्बाण होइ सिद्धी पण्हे आलिंगिएहि सब्बेहिं। अहिधूमिएहिं मज्झा णासइ दढ्डेहि सयलेहि।।५।। प्रश्न में सभी आलिंगित वर्ण होने पर सब कार्यों की पूर्णत: सिद्धि होती है। अभिधुमित वर्ण होने पर मध्यम सिद्धि होती है। यदि प्रश्न में सभी दग्धाक्षर हों तो सिद्धि नष्ट हो जाती है।।५।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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