Book Title: Sramana 2004 01
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 283
________________ भूमिका ज्ञानदीप (चूड़ामणिसार) ज्योतिर्विद्या से सम्बद्ध प्रश्नशास्त्र-विषयक लघु ग्रन्थ है। इसमें किसी आरभ्यमाण कार्य की सिद्धि और असिद्धि तथा किसी नष्ट या विलुप्त वस्तु के लाभ या अलाभ से सम्बद्ध प्रश्नों के उत्तर प्रश्नकर्ता के वाक्याक्षरों के द्वारा बता देने की पद्धति का संक्षिप्त वर्णन है। इसका सम्यक् अभ्यासी विद्वान् प्रश्न वाक्य को सुन कर भूत, भविष्यत् और वर्तमान कालों के अनेक अज्ञात रहस्यों का उन्मीलन करने में समर्थ हो सकता है। इस ग्रन्थ में वर्णमाला के सभी वर्गों को आलिंगित, सुभग उत्तर संकट अभिधूमित मध्यम अधर अधराधर संकट विकट दग्ध आदि संज्ञा-वर्गों में विभक्त किया गया है। प्रत्येक वर्ग के अनुसार उस का फल निर्दिष्ट है। प्रश्नकर्ता के द्वारा प्रयुक्त वाक्य में सभी आलिंगित वर्ण रहने पर पूर्णत: कार्यसिद्धि होती है। अभिधूमित वर्गों के रहने पर मध्यम कार्यासिद्धि और दग्धाक्षरों के रहने पर कार्य-सिद्धि नहीं होती। इसी प्रकार यदि किसी प्रश्न-वाक्य में अनेक संज्ञावर्गों के अक्षर मिश्रित होंगे तो जिस संज्ञा-वर्ग के अक्षर संख्या में सर्वाधिक होंगे उसी के अनुसार उसका उत्तर होगा। विभिन्न संयुक्त और असंयुक्त वर्गों के सम्मिलन की स्थिति में प्रश्नोत्तर क्या होगा, इसका भी प्रतिपादन किया गया है। यह लघु ग्रन्थ आचार्य जिनविजय मुनि द्वारा संशोधित एवं सम्पादित जयपाहुड नामक ग्रन्थ के परिशिष्ट में संस्कृत टीका के साथ छपा है। इस में केवल ७३ प्राकृत गाथायें हैं। सम्पादक ने इसका नाम ज्ञानदीपकाख्य चूड़ामणिसार-शास्त्र लिखा है। परन्तु मूल ग्रन्थ की प्रथम गाथा के अनुसार यह चूड़ामणि नामक किसी प्राचीनतम ग्रन्थ का सारांश है और इसका नाम ज्ञानदीप (जाणदीव) है। प्रथम गाथा में प्रयुक्त 'चूड़ामणिसारं' पद ग्रन्थ का स्वरूप-परिचय प्रस्तुत करता है और 'जाणदीवक्खं' पद उस की आख्या (संज्ञा)। अत: इसे ज्ञानदीप (जाणदीप) ही कहना उचित है। इस ग्रन्थ के कर्ता के सम्बन्ध में प्रामाणिक रूप में कुछ भी ज्ञात नहीं है। मूल ग्रन्थ ग्रन्थकार के सम्बन्ध में बिल्कुल मौन है। जैन साहित्य का बृहद् इतिहास नामक ग्रन्थ के पंचम भाग में पृ० २११ पर इस का जो परिचय दिया गया है, उसके अनुसार यह भद्रबाहु स्वामी की कृति है, परन्तु मूल ग्रन्थ की किसी भी गाथा में इस का वर्णन नहीं है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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