Book Title: Sramana 2004 01
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 278
________________ छाया: कपि-कृत-गुरुतर-व्युत्कार-श्रवण साहसोलनसात् बहु पृषः। उत्रसित वृषा-वारण निमित्त प्रमुत्ताकारः ।।२४६॥ अर्थ :- वान्दराओ द्वारा मोटेथी कराता हुकाहुकना अवाजनां श्रवणथी बलदो त्रास पामतां हता, अने त्रास पागेला ते बळदोने वाळवामाटे तेनां रखेवालो तेने मोटेथी बोलावतां हता। हिन्दी अनुवाद :- बन्दरों द्वारा जोर से निकलते हुकाहुक आवाज के श्रवण से बैल त्रास पाते थे और त्रासित उस बैलों को शान्त करने के लिये उनके रखवाले उन्हें जोर से बुलाते थे। गाहा :____ हक्कार-सद्द-पडिरव-संसवणुत्तासियाण सयराहं । आयनंतो दिसि दिसि घूयाणं भूरि-हुंकारे ॥२४७।। छाया :" आकार-शब्द-प्रतिरव संश्रवणो त्रासितानां 'शीघ्रग । आकर्णयन् दिशि दिशि घुकानां भूरि-हुंकारान् ।।२४७॥ अर्थ :- बोलावाता ते शब्दोनां पडघाना श्रवणथी त्रास पामतां घूवडनां गोटा हुंकार बधी दिशाओमां संभळातां हतां...... हिन्दी अनुवाद :- बोले गए उस शब्दों के प्रतिघात के श्रवण से त्रस्त हुए उल्लू के बड़े हुंकार सभी दिशाओं में सुनाई देते थे। गाहा : वसह-कंठ-पलंबिर-घण्टिया-रणिय-पूरिय-भूरितरंबरो । विस-खुरुक्खय-रेणु-निरंतरो वयइ तत्थ स वाणिय-सत्थओ ।।२४८।। छाया : वृषभ-कण्ठ-प्रलम्बशील-घण्टिकारणितपूरित-भूरितराम्बरः। वृष-खुरोत्खात-रेणु निरंतरो बजति तत्र स वणिक सार्थः।।१४८॥ अर्थ :- बळदोनां कण्ठमां बंधायेली घण्टडीना रणकारथी पूराई गयेल घणो आकाश तथा बळदोनां पगनी खरीओथी उडती धूळ ज्यां हमेशां फेलाती हती, त्यां ते वाणियानो सार्थ जतो हतो। हिन्दी अनुवाद :-बैलों के कण्ठ में लगी घण्टी के रणकार से व्याप्त आकाश तथा बैलों के पैर की खुरी से उड़ती धूल प्रतिदिन फैलाती थी। जहाँ उस वणिग् का सार्थ चलता था। गाहा : साहु-धणेसर-विरइय-सुबोह-गाहा-समूह-रम्माए । रागग्गि-दोस-विसहर-पसमण-जल-मंत-भूयाए ।।२४९।। १. सयराहं - देश्य - 72 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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