________________
छाया :
साधु-धनेश्वर-विरचित-सुबोध-गाथा-समूह-रम्यायाः।
रागाग्नि-द्वेषविषधर-प्रशमन-जलमन्त्र भूतायाः ।।२४९॥ अर्थ :- धनेश्वर साधु वड़े रचित सारा बोधने करावनार गाथाओना समूहवड़े रम्य, रागरूपी आग अने द्वेषरूपी सर्पने शांत करवा माटे जलरूप मन्त्रभूत... गाहा:
एसो एत्थ समप्पइ अडवि-पवेसस्स वत्रणो नाम ? ।
सुरसुन्दरी-नामाए कहाए पढमो परिच्छेओ ।।२५०।। छाया:
एषोऽत्र समाप्यते अटवि-प्रवेशास्य वर्णनो नाम ।
सुरसुन्दरी नाम्न्याः कथायाः प्रथमः परिच्छेदः ॥२५०॥ अर्थ :- एवो आ अटवीमा प्रवेशचं वर्णन करनारो सुरसुन्दरी नामनी कथानो प्रथमपरिच्छेद समाप्त कराय छ। हिन्दी अनुवाद :- सुन्दर बोध कराने वाली गाथाओं के समूह से रम्य, राग रूपी आग और द्वेषरूपी सर्प को शांत करने के लिए जलरूप मन्त्रभूत, ऐसे इस अटवी में प्रवेश का वर्णन करनेवाले धनेश्वर साधु द्वारा रचित सुरसुन्दरी नाम की कथा का प्रथम परिच्छेद समाप्त होता है।
॥ प्रथमः परिच्छेदः समाप्तः ॥
73
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org