Book Title: Sramana 2004 01
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 269
________________ गाहा: धनदेवनी सर्वत्र दानवीर तरीके ख्याति एसो पुण वुत्तंतो वित्थरिओ तत्थ पुर-वरे सहसा। अइचाई धणदेवो देइ धणं लक्खगन्नेहिं ।।२१५।। छाया: एष पुन वृत्तान्तो विस्तृतः तत्र पुरवरे सहसा । अतित्यागी धनदेवो ददाति धनं लक्षगण्यैः ।।२१५॥ अर्थ :- वळी आ वृत्तान्त ते नगरमा तरत ज फेलायो के धनदेव बहुमोटो दानेश्वरी छ। जे लाखोनुं दान आपे छ। हिन्दी अनुवाद :- यह वृत्तान्त उस नगर में तुरंत ही फैल गया कि धनदेव बहुत बड़ा दानी है जो लाखों का दान देता है। गाहा: ता जत्थ जत्थ दीसइ धणदेवो निय-वयंस-परियरिओ । - अन्नोन्नं पुर-लोओ तत्थ इमं विविहमुल्लवइ ॥२१६।। छाया : तस्मात् यत्र यत्र दृश्यते धनदेवो निज-वयस्यपरिवृतः । अन्योन्यं पुर-लोकः तत्रेदं विविधमुल्लपति ।।२१६॥ अर्थ : तेथी ते नगरमां ज्यां ज्यां धनदेव पोताना मित्रो साथे फरतो देखाय के नगरना लोको परस्पर आ प्रमाणे विविध प्रकारे बोले छे। हिन्दी अनुवाद :- उस नगर में जहाँ-जहाँ धनदेव अपने मित्रों के साथ घूमता दीखता कि नगर के लोग परस्पर इस प्रकार विविध रूप से बोलने लगते। गाहा : एसो सो धणदेवो चाई भोगी य तहा कला-कुसलो । अस्थि-जण-पत्थिओ जो वरिसइ लक्खेहिं धन्नोत्ति ।।२१७।। छाया : एष स धनदेवः त्यागी भोगी च तथा कला-कुशलः । अर्थि-जन-प्रार्थितो यो वर्षति लक्षः धन्य इति ॥२.१७॥ अर्थ :- "आ धनदेव ते ज छे जे त्यागी भोगी तथा कलाओमा कुशल छे। अने याचक लोकोथी प्रार्थना करायेलो लाखोनुं दान आपे छे। तेने धन्य छे ए प्रमाणे।" हिन्दी अनुवाद :- "यह वही धनदेव है जो त्यागी, भोगी तथा कलाओं में कुशल है और याचक वर्ग को लाखों का दान देता है, वह धन्य है !" अन्ने पण मच्छरिणो भणंति निय-चाय-गव्विया तत्थ । किं सलहिज्जइ एसो निय-पिउ-लच्छीए खय-कालो ? ।।२१८।। छाया: अन्ये पुनः मत्सरिणो भणन्ति निज-त्याग-गर्विताः तन्त्र। किं शलाध्यते एष निज-पितृ-लक्ष्म्याः क्षय-कालः ॥२१८॥ 63 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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