Book Title: Sramana 2004 01
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 268
________________ पास आए हुए धनदेव ने कहा - "तुम इस बालक को ग्रहण करो" और तत्पश्चात् प्रसन्न मुखवाले देवशर्मा ने भी इस प्रकार कहा। गाहा : तं सामी तं बंधू तं चिय मह जीय-दायगो सुयणु । किं किं न कयं तुमए जीयं कुमरस्स दिन्तेण ? ॥२१२।। छाया: त्वं स्वामी त्वं बंधुस्त्वमेव मम जीवदायकः सुतनु ! । किं किं न कृतं त्वया जीवितं कुमारस्य ददता ।।२१२।। अर्थ : "तगे मारा स्वामी छो। तमे बंधु छो। तमे ज मारा जीवनदाता छो। आ कुगारने जीवनदान आपता तमारा वड़े शुं शुं उपकार न करायो। (बधो ज उपकार कों) हिन्दी अनुवाद :- "तुम मेरे स्वामी हो। तुम बंधु हो, तुम्हीं मेरे जीवनदाता हो, इस कुमार को जीवनदान अर्पित करते आपके द्वारा क्या क्या उपकार नहीं किया गया ? (सब कुछ आपने किया है)।" गाहा : मह सामियस्स दिन्नं जीयं, जं पाण-वल्लहो पुत्तो । पाविट्ठ-दुट्ठ-जोगिय कयंत वयणाउ नीहरिओ ।।२१३।। छाया: गम स्वामिने दत्तं जीवितं यत् प्राणवल्लभः पुत्रः । पापिष्ठ-दुष्ट-योगि-कृतान्त-वदनात् निःसृतः ॥२१३॥ अर्थ :- तगे मारा स्वामिने जीवन आप्यु छ। कारण के प्राणथी पण प्रिय तेमनो आ पुत्र पापी, दुष्ट एवा योगीओ रूपि यमराजनां गुखगांथी बचाव्यो छे..." । हिन्दी अनुवाद :- "आपने मेरे स्वामी को जीवन अर्पण किया है क्योंकि प्राण से भी प्रिय उनके इस पुत्र को पापी, दुष्ट ऐसे योगी रूप यमराज के मुख से बचाया है।" गाहा : तत्तो धणदेवेणं नीओ गेहम्मि भोइओ सम्मं । सत्थस्स मेलिऊणं पट्टविओ नियय-ठाणम्मि ।।२१४।।। छाया: ततो धनदेवेन नीतो गृहं भोजितः सम्यक् । सार्थ मेलयित्वा प्रस्थापितो निजक-स्थाने ॥२१४॥ अर्थ :- त्यार पछी धनदेवे मने पोताना घेर लई जइने सारी रीते जमाइयो अने सार्थ नी साथे भेगो करीने मने मारा स्थाने मोकल्यो। हिन्दी अनुवाद :- फिर धनदेव ने मुझे अपने घर ले जाकर अच्छी तरह से भोजन करवाया और सार्थ के साथ मुझे मेरे स्थान पर भेजा। 62 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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