Book Title: Sramana 2004 01
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 266
________________ अर्थ :- तेथी हे भद्र ! आ मोटा-शोकनुं कारण में तमने कह्यु, हवे जो तमारी पासे कोई शक्ति होय तो आ बालकनुं तमे रक्षण करो।" हिन्दी अनुवाद :- अत: हे भद्र ! इस बड़े शोक का कारण मैंने आपको कहा, अब आपका कोई सामर्थ्य हो तो इस बालक का रक्षण करो। गाहा: भणियं धणदेवेणं संपइ चिट्ठति कत्थ ते पुरिसा ? । सो भणइ गहिय-कुमरो एगो नग्गोह-हेट्ठम्मि ।।२०५।। छाया: भणितं धनदेवेन सम्प्रति तिष्ठतः कुत्र तो पुरुषो । स भणति गृहीत-कुमार एको न्यग्रोधाधः ||२०५|| अर्थ :- व्यारे धनदेव वड़े पूछायु, “हमणां ते पुरुषो क्यां छे ?" त्यारे तेणे कह्यु के "कुमारने लईने एक योगी वडना हाडना नीचे रह्यो छे। हिन्दी अनुवाद :- तब धनदेव ने पूछा - अभी वह पुरुष कहाँ है? तब उन्होंने कहा कि “कुमार को लेकर एक योगी वटवृक्ष के नीचे रह रहा है।" गाहा : बीओ पुरे पविट्ठो सुराइ-कज्जेण संपयं चेव । इय भणिए धणदेवो जोगिय-पासे गओ तुरियं ।।२०६।। छाया : द्वितीयः पुरे प्रविष्टः सुराऽऽदि-कार्येण साम्प्रतमेव । इति भणिते धनदेवः योगिपार्श्व गतस्त्वरितम् ।।२०६॥ अर्थ :- “बीजो दारू विगेरे लेवा हमणा ज नगरमा गयो छे।" आ प्रमाणे कहेवाये छते धनदेव तुरत ज योगीनी पासे गयो। हन्दी अनुवाद :- "दूसरा मदिरा आदि लेने अभी ही गाँव में गया है" इस प्रकार सुनकर धनदेव तुरंत ही योगी के पास गया। गाहा : भणिओ य तेण एसो एयं मह देसु बालयं भद्द! । ___ अहयं सुवन्न-लक्खं तुह देमि, न एत्थ संदेहो ।।२०७।। । छाया: भणितश्च तेनैष एतं मह्यं देहि बालकं भद्र ! । अहं सुवर्ण-लक्षं तुभ्यं ददामि नाऽन्त्र संदेहः ।।२०७|| अर्थ :- त्यां जइने तेणे कद्यं “हे भद्र ! तुं आ बालक मने आपी दे, हुं तने लाख सोना महोर आपीश एमां शंका नथी।" हिन्दी अनुवाद :- वहाँ जाकर उसने कहा, "हे भद्र ! तू यह बालक मुझे दे दे। मैं तुझे लाख सुवर्ण मोहर दूंगा, उसमें कोई भी प्रकार की शंका मत करना।" 60 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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