Book Title: Sramana 2004 01
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 264
________________ अर्थ :- विविध प्रकारना वृक्ष नाफलो वडे मिश्रित थवाथी मेलु पाणी पीधुं जेना प्रभावथी हु स्वस्थ देहवालो थयो। अने मे विचार्यु। हिन्दी अनुवाद :- जहाँ तक उनके साथ कितनी ही पृथ्वीभाग जाने के बाद अत्यन्त तृषित मैं एक उपवन के निकुञ्ज में गया और विविध प्रकार के वृक्षों के फलों से मिश्रित जल पिया और स्वस्थ होकर मैं सोचने लगा। गाहा :___ रयणीइ गहिय कुमरं नासिस्समिमाण पाव-पुरिसाणं । इय चिंतिय चलिओ हं अलक्खिओ चेव सह तेहिं ।।१९८।। छाया: रजन्यां गृहीत्वा कुमारं नंक्ष्यामि आभ्यां पाप-पुरुषाभ्याम्। इति चिन्तयित्वा चलितोऽहं अलक्षित एव सह ताभ्याम्।।१९८॥ अर्थ :- रात्रिमा आ पापी पुरुषोथी कुमारने बचावीने हुं भागी जइश आम चिंतन करीने तेओ वड़े नहीं देखातो तेओनी साथे चालतो हतो। हिन्दी अनुवाद :- रात्रि में उन पापी पुरुषों से कुमार को बचाकर मैं भाग जाऊंगा, ऐसा सोचकर उनसे छुप-छुपकर मैं उनके साथ साथ चलता था। गाहा : योगीपुरुषतुं प्रपंच पत्ताए रयणीए निसुया अन्नोन्त्रमुल्लवेमाणा । एएण बालएणं सिज्झिस्सइ जक्खिणी अम्हं ।।१९९।। छाया: प्राप्तायां रजन्यां निःश्रुते अन्योन्यमुल्लपन्तौ । एतेन बालकेन सेत्स्यति यक्षिणी आवयोः ॥१९९।। अर्थ :- रात्रि प्राप्त थये छते में बनेने परस्पर वात करता सांभळया के "आ बालकवडे आपणने यक्षीणी सिद्ध थशे। हिन्दी अनुवाद :- रात्रि होने पर मैंने दोनों को परस्पर बात करते सुना कि "इस बालक द्वारा अपने को यक्षिणी सिद्ध होगी। गाहा :__ तुंगीय-पव्वयम्मी पत्ता हुणिऊण बालयं एयं । सिद्धाए जक्खिणीए पाविस्सामो निहिं तं तु ।।२०।। छाया : तुडीय-पर्वतं प्राप्ता हुत्वा बालकमेतम् । सिद्धायां यक्षिण्यां प्राप्स्यावः निधिं तं तु ॥२००।। अर्थ :- तुङ्गीक पर्वत ऊपर गयेला आपणे आ बालकनो होम करीने यक्षीणी सिद्ध थये छते निधिने प्राप्त करीशु।" हिन्दी अनुवाद :- तुङ्गिक पर्वत पर जाकर इस बालक का होम करके यक्षिणी सिद्ध होने पर हम निधि को प्राप्त करेंगे। 58 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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