Book Title: Sramana 2004 01
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 270
________________ अर्थ :- वळी बीजा केटलाक मत्सरिओ (ईर्ष्यालुओ) पोताना दानथी गर्वित थयेला त्यां कहे छे। “पोताना पितानी लक्ष्मीना क्षय माटे यमराज जेवो आ केम प्रशंसा कराय छे।" हिन्दी अनुवाद :- पुनः कितने ही ईष्यालु कहते हैं, "अपने पिता की लक्ष्मी का विनाश करने में यमराज तुल्य इसकी प्रशंसा कैसे की जाती है। गाहा : तं दाणमिह पसस्सं तं चेव य पोरू (रि?) सस्स वुड्ढ-करं । जं निय-परक्कमेणं विढविय विलसिज्जइ जहिच्छं ॥२१९।। छाया: तद् दानमिह प्रशस्यं तदेव च पौरुषस्य वृद्धिकरम् । यद् निज-पराक्रमेणार्जित्वा विलस्यते यथेच्छम् ।।२१९॥ अर्थ :- पुरुषार्थनी वृद्धिकरनार अने पोताना पराक्रमथी भेगी करीने लक्ष्मीनो ईच्छा मुजब विलास कराय छे ते ज दान अहीं प्रशंसा करवा मारे योग्य छ। हिन्दी अनुवाद :- स्वयं के पुरुषार्थ और पराक्रम से लक्ष्मी को प्राप्त करके स्वेच्छा से भोग और दान किया जाता है, वही दान यहाँ प्रशंसा करने योग्य है। गाहा : जं पुण अज्जय-पज्जय-जणयज्जिय-अत्थ-मज्झओ दाणं । परमत्थओ कलंकं तयं तु पुरिसाभिमाणीणं ।।२२०।। छाया : यद् पुनः आर्यक-प्रार्यक जनकर्जितार्थ-मध्यतो दानम्। परमार्थतः कलंकं तकं तु पुरुषाभिमानिनाम् ।।२२०॥ अर्थ :- वळी जे पिता-पितामह-प्रपितामह विगेरे द्वारा एकठा करेला धनमांथी दान करे छे ते तो परमार्थथी स्वाभिमानी पुरुषो माटे तो कलंकरूप छ। हिन्दी अनुवाद :- पुनः जो पिता-पितामह-प्रपितामह आदि द्वारा प्राप्त धन में से दान देता है वह तो परमार्थ से स्वाभिमानी पुरुष के लिए कलंकरूप है। गाहा : भणियं च बप्प-विढविय-दव्वेणं को न विडिरं कुणई ? । सइ-विढवण-विलासणयं जणयइ विरलं सुयं नारी ॥२२१॥ छाया: भणितं च 'पित्रार्जित-द्रव्येण को न 'आभोगं करोति ?। स्वार्जित-विलसनकं जनयति विरलं सुतं नारी ॥२२१॥ अर्थ :- एटला माटे ज कठेवायु छे के बापनी कमायेली लक्ष्मीथी कोण विलास करत नथी ? पण पोतानी कमायेली लक्ष्मीथी विलास करनारा विरल पुत्रने कोक नारी जन्म आपे छे।" १. बप्प-दे २. विडिरम्-दे 64 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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