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छाया:
तद् दृष्ट्वा नरनाथश्चिंतयति एष खलु चित्रकर्मणि । __अतिकुशलो यत् लिखितमपूर्व-रूपमिमं रूपम् ।।९१॥ अर्थ :- ते जोइने राजा विचारे छे के जरूर कोइ चित्रकळामां अत्यंत कुशल चित्रकारे आ अपूर्व रूपने आमा आलेख्य छ। हिन्दी अनुवाद :- चित्र को देखकर राजा सोचने लगा - कि अवश्य यह आदमी चित्रकला में अत्यंत कुशल चित्रकार है जिससे उसने ऐसा अपूर्व चित्र बनाया है। गाहा :
ति-लोक्कम्मिवि मन्ने एरिस-रूवा न इत्थिया अस्थि । चित्त-कला-निउणत्ता अदिट्ठ-रूवा इमा लिहिया ।।१२।।
छाया:
त्रिलोकेऽपि मन्ये ईदृशरूपा न स्त्री अस्ति ।।
चित्रकला-निपुणत्वाद् अदृष्टरूपा इमा लिखिता ।।१२।। अर्थ :- हुं एम मानुं के प्रणे लोकमां आवी स्वरूपवती स्त्री नहि होय। चित्रकलानी निपुणता वड़े क्यारेय नहीं जोयेलु रूप आमा आलेखायु छे। हिन्दी अनुवाद :- मैं मानता हूँ कि तीनों लोक में इतनी रूपवती स्त्री नहीं होगी, किन्तु चित्रकला की निपुणता से कभी भी नहीं देखा हुआ रूप इसमें आलेखित है। गाहा :
जइ पुण कत्थवि होज्जा एरिस-रूवेण इत्थिया कना । तीए वि संगमो जइ ता रज्जं होज्ज सकयत्थं ।।१३।।
छाया:
यदि पुनः कुत्रापि भवेत् ईदृश-रूपेण स्त्री कन्या ।
तस्या अपि संगमो यदि तद् राज्यं भवेत् सकृतार्थम् ।।९३॥ अर्थ :- वळी जो आवा स्वरूपवाळी स्त्री (कन्या) क्यांय पण होय अने तेनी साथे जो समागम थाय तो आ राज्य, सार्थकपणुं थाय। हिन्दी अनुवाद :- और यदि ऐसे स्वरूपवाली स्त्री (कन्या) कहीं भी हो और उनके साथ मेरा समागम हो तो यह मेरे राज्य का सार्थकत्व होता। गाहा :
एवं चिंतेंतस्स य वम्मह-सर-गोयरम्मि पडियस्स ।
वीसरिओ से अप्पा चित्तेऽवक्खित्त-चित्तस्स ।।१४।। छाया:
एवं चिन्तयतश्च मन्मथ-शरगोचरं पतितस्य ।
विस्मृतस्तस्य आत्मा चिोऽवक्षिप्त-चित्तस्य ॥९४॥ अर्थ :- आ प्रमाणे चिंतन करता ते राजा कामदेवना बाणनां विषयमां पडेलो अने चित्रमा खेंचायेला चित्तवाळो पोतानी जातने भूली गयो।
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