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अर्थ :- क्रमथी वधतो अने यौवनने प्राप्त थयेलो रूपमा कामदेवने जीती लीधो छे एवो ते धनदेव श्रेष्ठ-स्त्रीओने पण प्रिय थयो। हिन्दी अनुवाद :- क्रम से बड़ा होता और यौवन को प्राप्त, रूप में कामदेव को भी जीतनेवाला वह धनदेव सुन्दर-स्त्रियों को भी प्रिय हुआ। गाहा :
अह सो समाण-जोव्वण-रूवाइसएहिं वर-वयंसेहिं ।
परियरिओ आहिंडइ ईसर-लील विडंबंतो ।।१८४।। छाया :
अथ स समान-यौवन-रूपातिशायः वरवयस्यैः ।
परिवृत्त 'आहिण्डत ईश्वरलीलां विडम्बयन् ।।१८४॥ अर्थ :- हवे समान यौवनवाळा, रूपवान् श्रेष्ठ मित्रोथी परिवरेलो ईश्वरनी लीलाने विडम्बना करतो स्वेच्छापूर्वक भमतो हतो। हिन्दी अनुवाद :- अब तुल्य यौवनवाले, रूपवान् श्रेष्ठ मित्रों से आवृत्त ईश्वर की लीला को विडम्बित करता स्वेच्छापूर्वक घूमता था। गाहा :-
धनदेवनुं मित्रो साथे उद्यानमा आवद् अह अन्नया कयाइवि वयंस-विसरेण परिगओ एसो । नयराओ नीहरिओ पत्तो य मणोरमुज्जाणे ।।१८५।।
छाया:
अथान्यदा कदाचिदपि 'वयस्य-विसरेण परिगत एषः।
नगरालिस्सृतः प्राप्तश्च मनोरमोधानम् ।।१८५।। अर्थ :- हवे एकवार क्यारे पण मित्रोना समूहथी परिवरेलो नगरथी नीकल्यो अने मनोहर उधानमां ते आव्यो। हिन्दी अनुवाद :- अब एक बार मित्रों के समूह से परिवृत नगर से निकला और मनोहर उद्यान में वह आया। गाहा :
शोकाकुल पुरुषना दर्शन द्विट्ठो य तत्थ एगो पुरिसो गुरु-सोय-परिगओ तेण । वावी-तडोवविट्ठो अंसु-जलोहलिय-गंड-यलो ।।१८६।।
छाया:--
दृष्टश्च तौकः पुरुषो गुरु-शोक-परिगतस्तेन । __ वापी
तटोपविष्टोऽश्रु-'जलौघगण्डस्थलः ॥१८६॥ अर्थ :- व्यां तेणे अत्यंत दुःखथी घेरायेलो अने वावड़ीना किनारा ऊपर बेठेलो, अश्रुनी जलधारा वड़े भींजायेला गालवालो एक पुरुष जोयो। १. आहिण्डत = स्वेच्छया परिभ्रमति २. वयस्यविसरेण = मित्रसमूहेन ३. ओहलिय-दे
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