Book Title: Sramana 2004 01
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 261
________________ हिन। अनुवाद :- वहाँ उसने अत्यंत दुःख से दुःखित और वापी के किनारे पर बैठा हुआ, अश्रु की |रा से प्लावित कपोलवाला एक पुरुष देखा। गाहा : धणदेवो तं दटुं पुरिसं उप्पन्न-गरुय-कारुण्णो । आसन्ने गंतूणं महुर-गिराए इमं भणति ।।१८७।। छाया: धनदेवस्तं दृष्ट्वा पुरुषमुत्पन्न-गुरुकारुण्यः । आसल्लं गत्वा मधुर-गिरया इदं भणति ||१८७॥ अर्थ :- ते पुरुषने जोइने उत्पन्न थयेली महान् करुणावाळो धनदेव तेनी पासे जईने मधुर-लाणी वड़े आ प्रमाणे बोल्यो। हिन्दी अनुवाद :- उस पुरुष को देखकर उत्पन्न हुई महान् करुणा से धनदेव उनके पास जाकर मधुर वाणी से इस प्रकार बोला। गाहा : दुःखना कारणनी पृच्छा को सि तुमं कत्तो वा किं वा ते सोय-कारणं भद्द? । एवं च तेण भणिओ सो पुरिसो एवमुल्लवइ ।।१८८।। छाया: कोऽसि त्वं कुतो वा किं वा ते शोक-कारणं भद्र ? | एवं च तेन भणितः स पुरुषः एवमुल्लपति ।।१८८।। अर्थ :- “हे भद्र ! तुं कोण छे ? क्यांथी आव्यो छे ? अथवा तारा शोकनुं कारण शुं छे ?" आ प्रमाणे तेना वड़े कहेवायेलो ते पुरुष आ प्रमाणे कहे छ। हिन्दी अनुवाद :- "हे भद्र ! तू कौन है ? कहाँ से आया है ? तेरे शोक का कारण क्या है?" इस प्रकार पूछने पर वह पुरुष इस प्रकार कहने लगा। गाहा : दुःखी पुरुषनो उत्तर कह तम्मि वज्जरिज्जइ दुक्खं गुरु-दुक्ख-पीडिय-मणेहिं । न कुणइ जो पडियारं न य दुहिओ अहव जो होइ? ||१८९।। छाया: कथं तस्मिन् कथ्यते दुःखं गुरु-दुःख-पीडित-मनोभिः । न करोति यः प्रतिकारं न च दुःखितोऽथवा यो भवति ।।१८९॥ अर्थ : “भारे. दुःखथी पीडित मन होते छते पण जे दुःखनो प्रतिकार करतो नथी अथवा जो दुःखित थतो नथी तेने विषे दुःख केम कहेवाय ? हिन्दी अनुवाद :- "अत्यंत दुःख से पीड़ित मन होने पर भी जो दुःख का प्रतिकार नहीं करता अथवा जो दुःखित नहीं होता है उससे दुःख कैसे कहा जाय?" गाहा : तहवि हु कहेमि सुंदर ! मा वयणं तुज्झ निष्फलं जाउ । सीहगुहा-नामेणं अइविसमा अत्थि पल्लित्ति ।।१९०।। 55 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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