Book Title: Sramana 2004 01
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 259
________________ हिन्दी अनुवाद पांच धायमाओं से विविध तरह से पोषित, माता-पिता को आनंद देने वाला वह बालक कुमारत्व अवस्था को प्राप्त हुआ। गाहा : कुमार द्वारा विद्या प्राप्ति अब्भहिय- अट्ट - वरिसो सम्मं अब्भसिय-सयल - विज्जस्स । उज्झायस्सुवणीओ विन्नाय -कला-कलावस्स ।। १८० ॥ थेवेण वि कालेणं अहिगमियाओ समत्थ-विज्जाओ । सयले कला-कलावे अह जाओ सोवि पत्तो ।। १८१ ।। छाया : अभ्यधिकाष्ट वर्षः सम्यगभ्यस्त सकलविद्याय । उपाध्यायोपनीतो विज्ञात-कला-कलापाय 11१८० ॥ स्तोकेनापि कालेनाधिगमिताः समस्तविद्या: 1 सकले कला-कलापेऽथ जातः सोऽपि प्राप्तार्थः ||१८१ ॥ अर्थ :- आठ वर्षथी कंइक अधिक उंमरवाळो ते कुमार, सकल विद्याना अभ्यासी, कला समूहना ज्ञाता, उपाध्याय भगवंतने समर्पित थयेलो अल्प समयमां प्राप्त करेली समस्त विद्यावाळो, समस्त कला समूहमां प्राप्त करेला अर्थवाळो (रहस्यवाळो थयो । हिन्दी अनुवाद :- आठ वर्ष से अधिक उम्रवाला वह कुमार, समस्त विद्या का अभ्यासी, समस्त कलाओं का ज्ञाता, उपाध्याय भगवंत को समर्पित अल्प समय में समस्त विद्याओं में पारंगत, समस्त कला समूह में रहस्यार्थज्ञाता हुआ । गाहा : धनदेव कुमारनुं स्वगृहे आगमन तत्तो गहिय-कलावो समाणिओ निय- घरम्मि पिउणा से उज्झाओ स पूइओ छाया : छाया : ततो गृहीत कलापः समानीतो निज-गृहं धनदेवः । पित्रा तस्योपाध्यायः सपूजितः वस्त्रादिभिः ||१८२ ॥ अर्थ :- त्यारपछी ग्रहण करेली कला वाळो ते धनदेव पोताना घरे पिता वडे लवायो अने वस्त्रादिथी उपाध्यायनी पूजा कराई। हिन्दी अनुवाद :- तत्पश्चात् गृहीत कलावान् वह धनदेव पिता के साथ घर आया और वस्त्रादि से उपाध्याय की पूजा की गई। गाहा : कमसो पवड्ढमाणो निज्जिय- अणंग-रूवो धणदेवो । वत्थमाईहिं ।।१८२।। धनदेव यौवनने प्रांगणे धणदेवो जोव्वणं समणुपत्तो । जाओ वर- कामिणी - दइओ ।। १८३ ।। Jain Education International क्रमशः प्रवर्धमानो धनदेवः यौवनं समनुप्राप्तः । निर्जितानङ्गरूपो जातः वर- कामिनी- दयितः ||१८३ ॥ युग्मम् 53 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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