Book Title: Sramana 2004 01
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 247
________________ छाया: तदनन्तरं च सुमतिर्निर्मल-सित-वसन-शोभितशरीरः । गोरोचनकृत तिलकः समागतो राज्ञः पुरतः ॥१३७॥ अर्थ :- व्यारबाद तरत ज निर्मळ-श्वेत-वस्ाथी सुशोभित शरीरवाळो, गोरोचनना करेला तिलकवालो सुमति नैमित्तिक राजानी पासे आव्यो। हिन्दी अनुवाद :- तत्पश्चात् तुरंत ही निर्मल-श्वेत-वस्त्र से सुशोभित देहवाला, गोरोचन के तिलकवाला सुमति नैमित्तिक राजा के पास आया। गाहा : आसी-पयाण-पुव्वं दाउं दुव्वक्खए नरिंदस्स । रना कओवयारो उचियासणगम्मि उवविट्ठो ।।१३८।। छाया : आशीः प्रदानपूर्व दत्त्वा दूर्वाक्षतान् नरेन्द्राय । राज्ञा कृतोपचार उचितासनक उपविष्टः ॥१३८॥ अर्थ :- आशीर्वाद आपवा पूर्वक मांगलीक वस्तुओ आपीने राजा वड़े करेला उपचार (विनय) वाळो सुगति, उचित आसन पर बेठो ! हिन्दी अनुवाद :- आशीर्वाद प्रदानपूर्वक मांगलिक (भेंट) राजा को प्रदान कर उसके द्वारा दिये गये उचित आसन पर सुमति बैठा। गाहा :- राजा तथा नैमित्तिकनो वार्तालाप रना पच्चय-हेउं अतीय-वत्थुम्मि पुच्छिओ एसो । पच्चक्खं पिव सव्वं साहेइ सो अवितहं जाव ।।१३९।। छाया: राज्ञा प्रत्यय हेतुरतीत-वस्तुनि पृष्ट एषः । प्रत्यक्षमिव सर्व कथयति सोऽवितथं यावत् ।।१३९॥ अर्थ :- राजा वड़े विश्वास माटे भूतकालीन विषयमां ते पूछायो। अने तेणे प्रत्यक्षनी जेम बधी वस्तुओ सत्य कही बतावी। हिन्दी अनुवाद :- राजा द्वारा विश्वास हेतु भूतकालीन विषय पूछा गया, तब उसने प्रत्यक्ष की तरह सभी चीजें सत्य कह सुनायी। गाहा : ताहे पहसिय-वयणो राया नरवाहणो इमं भणति । भो सुमइ ! मज्झ भगिणी एसा कमलावई कण्णा ।।१४०।। एईए को भत्ता होही मण-वल्लहुत्ति वज्जरसु । सुमई निरूविऊणं निमित्तमेवं समुल्लवइ ।।१४१।। छाया: तदा प्रहसित-वदनो राजा नरवाहन इदं भणति । भो सुमति ! मम भगिन्येषा कमलावती कन्या ||१४०।। 41 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298