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गाहा :
चित्रकारनी शोध
भणियं रन्ना को इह साइसयं लिहइ चित्त-कम्मति । मइसागरेण भणियं सुपसिद्धो ताव इह नयरे ।। १४८ ।। एक्को च्चिय कमलावइ - उज्झाय- सुमित्तसेण-नामस्स । तणओ उ चित्तसेणो अइकुसलो चित्त कम्मम्मि || १४९।।
- युग्मम्
छाया :
भणितं राज्ञा क इह सातिशयं लिखति चित्र - कर्मेति । मतिसागरेण भणितं सुप्रसिद्धस्तावदिह नगरे || १४८ ॥
ਟਰੈਨਕ
कमलावत्युपाध्याय - सुमित्रसेन - नाम्नः | चित्रसेनोऽतिकुशलश्चित्र-कर्मणि ॥१४९॥
तनयस्तु
अर्थ :- राजा कहयु - “अतिशय कुशळ चित्र कोण बनावे छे ?" त्यारे मतिसागर मन्त्रीए कह्यु के, “आ नगरमां सुप्रसिद्ध एक ज कमलावतीना उपाध्याय सुमित्रसेननो पुत्र चित्रसेन चित्रकळामां अत्यंत कुशल छे।”
हिन्दी अनुवाद :- राजा ने पूछा, "अत्यंत सुन्दर चित्र कौन बनाता है ?" तब मतिसागर मन्त्री ने कहा कि, "इस नगर में कमलावती के शिक्षक सुमित्रसेन का पुत्र चित्रसेन ही एक अत्यंत कुशल है । "
गाहा :
छाया :
चित्रसेनने आमंत्रण
रन्ना भणियं सिग्धं वाहरह तयंति तक्खणेण अहं । वाहरिओ संपत्तो भणिओ रत्ना सबहु- माणं ।। १५० ।।
राज्ञा भणितं शीघ्रं व्याहरत तकमिति तत्क्षणेनाहम् । व्याहृतः संप्राप्तो भणितो राज्ञा
सबहुमानम् ॥१५०॥ अर्थ :- राजाए कहयुं, “जल्दीथी तेने बोलावो,” अने ते ज क्षणे बोलायेलो हुं त्यां पंहोच्यो त्यारे राजाए बहुमान पूर्वक मने कहयुं ।
हिन्दी अनुवाद :- राजा ने कहा- "शीघ्र ही उसे बुला लाओ और उसी क्षण आह्वाहित मैं वहाँ गया तब राजा ने बहुमान पूर्वक मुझे कहा । "
गाहा :
राजावडे चित्रकारने आज्ञा
कमलावईए रूवं सिग्घं आलिहसु
चित्त फलहीए ।
जं आणवेसि, भणिउं सोहण वन्नेहि तं लिहियं ।। १५१ ।
छाया :
चित्र- फलकायाम्
कमलावत्या रूपं शीघ्रमालिख • यदाज्ञापयसि भणित्वा शोभन - वर्णैस्तद् लिखितम् ॥१५१ ॥ अर्थ :- "कमलावतीनुं रूप चित्रपट उपर तरत बनावो," में कहयु, “जेवी आपनी आज्ञा ।” आम कहीने बहु सारा रंगो वडे में तेणीनुं चित्र बनाव्यु ।
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