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गाहा :
उच्छोडिय-बंधो सो रन्ना भणिओ य भद्द ! उवविससु । आइक्खसु मह सच्चं केण तुमं पेसिओ एत्थ ॥१०५।।
छाया:
उच्छोटित - बन्धः स राज्ञा भणितश्व भद् ! उपविश ।
आचक्ष मयं सत्यं केन त्वं प्रेषितोऽत्र ||१०५॥ अर्थ :- बंधन रहित थयेलो ते चित्रकार राजा वड़े कहेवायो, “हे भद्र ! तुं बेस अने मने सांचु कहे अहीं तुं कोना वड़े मोकलायो छे ?" हिन्दी अनुवाद :- बन्धन से रहित हुए चित्रकार से राजा ने कहा, "हे भद्र ! तू बैठ और मुझे सत्य बता कि यहाँ तू किसके द्वारा भेजा गया है ?" गाहा :
तो भणइ चित्तसेणो निसुणसु नर-नाह ! एत्थ परमत्थं । चित्तगर-वेस-धारी समागओ जेण अहमेत्थ ।।१०६।।
छाया:
ततो भणति चित्रसेनो निशृणु नरनाथ ! अत्र परमार्थम् ।
चित्रकार-वेश-धारी समागतो येनाऽहमात्र ॥१०६॥ अर्थ :- त्यारे चित्रसेने कहयु, “हे नरनाथ ! तमे परमार्थने सांभळो चित्रकारन वेशा ने धारण करनार हुं अहींया आव्यो छु। हिन्दी अनुवाद :- तब चित्रसेन ने कहा. "हे नरनाथ ! आप परमार्थ को सुनिये, चित्रकार के वेष में मैं यहाँ आया हूँ।" गाहा :- चित्रकार द्वारा आगमनना कारण- निवेदन ___ अत्थेत्थ कुसग्गपुरं सुपसिद्धं चेव देव-पायाणं ।
नयर-गुणेहुववेयं धण-धन्न-समिद्ध-जण-कलियं ॥१०७।।
छाया:
अस्त्या कुशावापुरं सुप्रसिद्भमेव देव-पादानाम् । ___ नगर-गुणरूपपेतं धन-धान्य-समृद्ध-जनकलितम् ॥१०॥ अर्थ :- नगरना गुणोथी युक्त, धन-धान्यथी समृद्ध तथा लोकोथी युक्त सुप्रसिद्ध अहीं कुशाग्रपुर नामनुं एक नगर छे। हिन्दी अनुवाद :- नगर के गुणों से युक्त, धन-धान्य से समृद्ध तथा जनसमुदाय से व्याप्त सुप्रसिद्ध कुशाग्रपुर नाम का एक नगर यहाँ है। गाहा :
धनवाहन राजा तथा तेनो परिवार पणइ-जन पूरियासो राया धणवाहणोत्ति तत्थासि । पाणप्पिया से देवी वसन्तसेणत्ति नामेण ॥१०८।।
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