Book Title: Sramana 2004 01
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 241
________________ छाया : श्रीकान्ता अनुदिवसं बजति कमलावत्याः पालम् । जाता च गुरुक-प्रीतिरन्योन्यं तयो योरपि ॥११५॥ अर्थ :- श्रीकान्ता कमलावती पासे रोज जती हति, अने ते बन्लेनी पण परसार गाढ प्रीति थई। हिन्दी अनुवाद :- श्रीकान्ता कमलावती के पास रोज जाती थी और उन दोनों की भी परस्पर गाढ़ प्रीति हुई। गाहा: कमलावती नी कला निपुणता इत्थी-जण-जोगाओ गहियाओ कलाओ बाल-भावेवि । सगल-कला-निउणस्स उ पासम्मि सुमित्तसेणस्स ।।११६।। छाया : स्त्री-जन-योग्या गृहीताः कला बालभावेऽपि । सकला-कला-निपुणस्य तु पावें सुमित्रसेनस्य ।।११६॥ अर्थ :- स्त्री जनने योग्य बधी कळाओ तेणीए बालपणामां ज सर्वकळा निपण एवा सुमित्रसेननी पासेथी ग्रहण करी हती। हिन्दी अनुवाद :- स्त्रियों के योग्य सब कलाएं उसने बचपन में ही सर्व कला निपुण ऐसे सुमित्रसेन के पास से ग्रहण कर ली थी। गाहा : राय-दुहियाए समयं चित्ताईयाहि विविह-कीलाहिं । सिरिकंता कीलेत्ता विगाल-समयम्मि एइ गिहं ।।११७।। छाया: राज-दुहित्रा समकं चित्रादिकाभिर्विविध-क्रीडाभिः । श्रीकान्ता कीडित्वा विकाल-समये एति गृहम् ।।११७॥ अर्थ :- राजपुत्री साथे विविध जातनी चित्र-विचित्र क्रीडाओ करीने श्रीकांता विकाळसमयमा घरे आवती हती। हिन्दी अनुवाद :- राजपुत्री के साथ में विविध प्रकार की चित्र-विचित्र क्रीडा करके श्रीकांता विकाल समय में घर आती थी। गाहा : सिरिकंताए समयं सिणेह-साराए राय-धूयाए । वोलीणो बहु-कालो नाणाविह-कीडण-रयाए ॥११८।। छाया: श्रीकान्तया समकं स्नेह-साराया राजदुहितुः । अतिकान्तो बहुकालो नानाविध-कीडनरतायाः ।।११८॥ अर्थ :- श्रीकान्तानी साथे विविध क्रीडामा रत स्नेह सभर राजपुत्रिनो घणो काळ (समय) पसार थइ गयो। 35 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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