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जीवन्धरचम्पू में पर्यावरण की अवधारणा : ६३
की भावना को मूर्त रूप देने का संकल्प करना चहिये और सबसे अन्त में जीवन्धर स्वामी की तरह वैराग्य धारणकर मुक्ति प्राप्त करना चाहिये, जो आन्तरिक पर्यावरण की शुद्धता का चरम निकष है।
सन्दर्भ :
१. गद्यं पद्यं च मिश्रं च तत् त्रिधैव व्यवस्थितम् - काव्यादर्श १ / ११ / २. गद्यपद्यमयं काव्यं चम्पूरित्यभिधीयते साहित्यदर्पण |
३. जीवन्धरचम्पू (सम्पा०
पं० पन्नालाल जैन साहित्याचार्य),
४. जीवन्धरचम्पू, १/३३-३४|
५. वही, १ / ३५।
६. वही, १ / ७०-७३।
७. वही, २/१९।
८. वही, ११ / २२ ।
९. वही, ११/२४-२६।
वही,
१०. ११.
वही,
१२ . वही, ४/३।
३/३।
३/७-१०।
१३. वही, ४/६ - ११
१४. वही, ४ / १७ ।
१५. वही, १६. वही, ७/१३ ।
७/१५-१८१
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