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निशृणुत एकाग्रमनसो भूत्वा इदानी कथां कथ्यमानाम् । अर्धतृतीयशतैर्गाथानां
कृत-परिच्छेदम् ।।४४|| अर्थ :- विभव अर्थात् समृद्ध कुलनी बालिका बड़े करायेला कटाक्षना विक्षेप समान, निष्फल एवा घणा विघ्नना भय बड़े सर्यु। हवे अढीसो गाथा बडे करायेलो आ प्रथम परिच्छेद छे। जेमां कहेवाती कथाने हमणां एकाग्र मनवाळा थइने, तमे सांभळो। हिन्दी अनुवाद :-विभव अर्थात् समृद्ध कुल की बालिका द्वारा हुए कटाक्ष के विक्षेपतुल्य, निष्फल ऐसे बहुत विघ्नों के भय से क्या ? अब अढाई सौ (२५०) गाथाओं का यह प्रथम परिच्छेद है - अब गुम्फित कथा को एकाग्र मन से आप सुनो। गाहा :
जंबूद्वीप वर्णन अत्थेत्थ सुवित्थिन्नो उड्ढाहो-लोग-मज्झयारम्मि ।
नामेण तिरिय-लोगो विबुहाणुगओ सुमेरुव्व ॥४५।। छाया:
अस्त्यत्र सुविस्तीर्ण 'ऊर्बाधोलोकमध्ये।
नाम्ना तिर्यगलोको 'विबुधानुगतः सुमेरुरिव ॥४५॥ अर्थ :- देवो बड़े सेवित मेरु पर्वतनी जेम पंडितो बड़े सेवायेल मोटा विस्तारवालो ऊर्ध्व-अधोलोकनी मध्यमां तिर्छालोक नामनो लोक छ। हिन्दी अनुवाद :- देवों से सेवित मेरु पर्वत की तरह पण्डितों से सेवित बृहत् विस्तारवाला ऊर्ध्व-अधोलोक के मध्य में तिजलोक नाम का लोक है। गाहा :
दीवो उ अस्थि तत्थवि वित्थरओ जोयणाण लक्खं तु । .
जलहि-वलयावगूढो जंबुद्दीवो त्ति विक्खाओ ॥४६॥ छाया :
द्वीपस्त्वस्ति तत्रापि विस्तारतो योजनानां लक्षं तु ।
जलधिवलयावगूढो जम्बद्रीप इति विख्यातः ॥४६॥ अर्थ :- आ तिर्छालोकमां समुद्रना वलयोथी घेरायेलो, लाख योजन प्रमाण विस्तारवाळो, प्रख्यात जंबुद्धीप नामनो द्वीप छे। हिन्दी अनुवाद :- इस तिर्छालोक में समुद्र के वलयों से आवृत्त, लाख योजन प्रमाण विस्तृत और प्रख्यात जंबूद्वीप नाम का द्वीप है। गाहा :
भरतक्षेत्र वर्णन तस्स व दाहिण-भागे भरहं नामेण अस्थि वर-खेत्तं ।
वेयड्ड नग-वरेणं दुहा-विहत्तं सुवित्थिन्नं ।।४७।। छाया :
तस्य च दक्षिणभागे भरतं नाम्नास्ति वरक्षेत्रम् ।
वैताग्यनगवरेण द्विधा विभक्तं सुविस्तीर्णम् ।।४०॥ १. मझवारम्मि-दे २. विबुधाः - पण्डिताः देवाश्च
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