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गाहा:
हस्तिनापुर नगरनो राजमार्ग जत्थ य पुरम्मि निच्चं इओ तओ बहु-पओयण-परेण ।
भमिर-जण-समुदएणं दुस्संचाराओ रत्थाओ ।।६६।। छाया :
यत्र च पुरे नित्यमितस्ततो बहुप्रयोजनपरेण ।
भ्रमणशील-जन-समुदायेन दुःसंचारात् रथ्याः ॥६६॥ अर्थ :- ते नगरमां हमेशां घणा प्रयोजन वसात् एक बाजुथी बीजीबाजु भमता एवा लोकोनां समुदाय वड़े राजमार्ग एकदम सांकडो थइ गयो हतो। हिन्दी अनुवाद :- उस नगर में सदैव बहुत प्रयोजनों के कारण एक ओर से दूसरी ओर भ्रमणशील लोगों के समुदाय से राजमार्ग अतीव संकुचित हो गया था। गाहा :
नगरनी पताकानु वर्णन जत्थ य कोडि-पडाया-पच्छाइय-सयल-गयण-मग्गम्मि । - लोओ गिम्ह दिणेसुवि रवि-कर-तावं न याणेइ ।।६७।। छाया :
यत्र च कोटि पताका-प्रच्छादित-सकलगगनमार्गे ।
लोको ग्रीष्मदिनेष्वपि रविकर-तापं न जानाति ॥६॥ अर्थ :- (जे क्रोडपति होथ तेना महेल पर पताका होय) अने ज्यां कोटि पताकाथी ठंकाई गयेला आखा गगनना मार्गो होते छेते गरमीनादिवसोमां पण लोको सूर्यना किरणोना तापने जाणता न हता। अर्थात् ते नगर कोटयाधीपतिना गगनचुंबी महेलोथी व्याप्त हतो। हिन्दी अनुवाद :- (कोट्याधिपति के महलों पर पताका लहराती है) और जहाँ कोट्याधिपति की करोड़ों पताकाओं से व्याप्त सम्पूर्ण गगन-मार्ग होने से ग्रीष्मकाल में भी लोग सूर्य के किरणों के ताप को जानते नहीं थे। (अर्थात् वह नगर कोट्याधिपति के गगनचुंबी महलों से अपने नगर की सुषमा बढ़ाता था।) गाहा :
नगरनी समृद्धि जत्थ य पुरम्मि पुरिसा घर-भित्ति-निहित्त-मणि-मऊहेहिं ।
निच्चं हयंधयारे-गयंपि राइं न याणंति ।।६८॥ छाया :
यत्र च पुरे पुरुषा गृह-भित्ति-निहितमणिमयूखैः ।
नित्यं हतान्धकारे गतामपि रात्रिं न जानन्ति ॥१८॥ अर्थ :- जे नगरमा (पुरुष) घरनी दिवालोमां जडेला मणिओनी किरणाओ बड़े हमेशा अंधकार नाश थये छते पसार थयेली रात्रिने पण जाणता नथी। (अर्थात् हाल तीजोरीमां पण रत्नो सलामत नथी त्यां ते वखते दीवालमां आवा कीमति रत्नो जडाता हता)। (राम-राज्य हउ)
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