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छाया :
अथान्यदा कदाचिदप्यास्थानगतस्य राज्ञः तस्य ।
विनय प्रणतोत्तमाङ्गः प्रतिहारः बंधुलो भणति ॥८॥ अर्थ :- हवे क्यारेक कोईक वखत सभामा बिराजेला ते राजाने, विनयथी नमी गयेला मस्तकवाळो बंधूल नामनो चोकीदार आ प्रमाणे कहे छ। हिन्दी अनुवाद :- एक बार सभा में विराजित राजा को विनयान्वित हुए मस्तकवाला बंधूल नाम का द्वारपाल इस प्रकार कहता है। गाहा:
चित्रकार आगमन वृत्तान्त देव! कुसग्गपुराओ चित्तयरो चित्त-कम्म-पत्तट्ठो' ।
नामेण चित्तसेणो समागतो चिट्ठइ दुवारे ।।८१।। छाया:
देव ! कुशाग्रपुरात् चित्रकारश्चित्रकर्म-प्राप्तार्थः ।
नाम्ना चित्रसेनः समागतस्तिष्ठति द्वारे ॥४१॥ अर्थ :- है देव ! कुशाग्रपुर नगरथी आवेलो चित्रकर्ममां चतुर चित्रकार नाम बड़े चित्रसेन द्वार उपर उभो छे।। हिन्दी अनुवाद :- "हे देव ! कुशाग्रपुर नगर से आया हुआ चित्रकर्म में चतुर चित्रसेन नाम का चित्रकार द्वार पर खड़ा है। गाहा :
सो देव-पाय-दसण-सुह-कंखी इच्छए इह पवेसं ।
एवं च ठिए अम्हं देवाएसो पमाणंति ।।८।। छाया:
स देव-पाददर्शनशुभकांक्षी इच्छत्यत्र प्रवेशम् ।
एवं च स्थिते मम देवादेशः प्रमाणमिति ।।८२॥ अर्थ :- हे देव ! आपना चरणनां दर्शनने सुखपूर्वक इच्छतो ते चित्रकार अहीं प्रवेशने इच्छे छे ! आम होते छते मारे आपनो आदेश प्रमाण छ। हिन्दी अनुवाद :- हे देव ! सुखपूर्वक आपके चरणारविन्द के दर्शन का अभिलाषी चित्रकार यहाँ प्रवेश का इच्छुक है। इस प्रकार मुझे आपका आदेश प्रमाण है। गाहा :
- तत्तो रण्णा भणियं लहुं पवेसेहि, ताहे सो विहिणा ।
अत्थाणम्मि पविट्ठो कय-विणओ राइणो पुरओ ।।८३॥ छाया:
ततो राज्ञा भणितं लघु प्रवेशय तदा स विधिना ।
आस्थाने प्रविष्टः कृतविनयो राक्षः पुरतः ।।८३॥ गाहा :
चित्रकारनुं आगमन उवविट्ठो भूमीए रन्ना भणिओ कुओऽसि तं भद्द ! ? ।
केण व कज्जेण इहं समागओ मह समीवम्मि? ।।८४।। १. पत्तसट्ठो = बहुशिक्षितः
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