________________
छाया:
सूर इव पृथुप्रतापः सिंह इवाकृत-परबलाशङ्कः ।
उदधिरिव सुगंभीरश्चन्द्र इव जनमन-आनन्दः ॥७७|| अर्थ :- सूर्य जेवा मोटाप्रतापवाळो, सिंहनी जेम बीजाना बलनी शंका नहि करतो समुद्र जेवो गंभीर तथा चन्द्रनी जेम लोकोना मनने आनंद आपनारो। (अर्थात् राजा बलवान् गंभीर अने आनंदी स्वभाववाळो हतो)। हिन्दी अनुवाद :- सूर्य जैसे विशाल प्रतापवाला, सिंह की तरह अन्य के बल से भय नहीं करनेवाला, समुद्र सदृश गंभीर तथा चन्द्रमा के तुल्य लोगों के चित्त को आनन्दित करनेवाला राजा था (अर्थात् बलवान्, गंभीर और आनंदी स्वभाव वाला था)। गाहा :
रूवेण कामदेवो बुद्धीए सुर-गुरुस्स सारिच्छो ।
निवसइ पमोय-पत्तो राया सिरि-अमरकेउत्ति ।।७८।। छाया:
रूपेण कामदेवो बुद्ध्या सुरगुरोः सदृक्षः । निवसति प्रमोदप्राप्तो राजा श्रीअमरकेतुरिति ।।७८॥
-पंचभिः कुलकग अर्थ :- रूपवड़े कामदेव, बुद्धिवड़े बृहस्पतिसमान, आनन्दित श्री अमरकेतुनामनो राजा हतो ! (राजा बुद्धि अने रूप बंनेमां समतोल हतो अर्थात् एक राजा तरीके भीम अने कान्त जे बे गुणोनी अपेक्षा होय छे। ते राजामां होवाथी राजा सर्व गुण संपन्न हतो)। हिन्दी अनुवाद :- रूप से कामदेव सदृश, बुद्धि से बृहस्पति समान आनन्दित श्री अमरकेतु नाम का राजा था। (राजा बुद्धि और रूप दोनों में समतोल था अर्थात् नृपत्व के गुण-भीम-कान्त दोनों गुणों से वसित था। अतः राजा सर्व-गुण सम्पन्न था।) गाहा :
राजा द्वारा राज्य पालन तस्स य ति-वग्ग-सारं रज्ज-सिरि सम्ममणुहवंतस्स ।
वच्चंति वासराइं इंदस्स व देव-लोगम्मि ॥७९॥ छाया:
तस्य च त्रिवर्ग-सारां राज्यश्रियं सम्यगनुभवतः वजन्ति वासराणि इन्द्रस्येव
७९॥ अर्थ :- ऋण वर्ग (धर्म-अर्थ-काम) ना सारभूत राज्यनी लक्ष्मीने सारी रीते अनुभवता राजानां दिवसो देवलोकमां रहेला इन्द्रनी जेम पूर्ण थता हता। हिन्दी अनुवाद :- तीन वर्ग (धर्म-अर्थ-काम) के अर्क तुल्य राज्य की लक्ष्मी को अच्छी तरह से उपभोग करते हुए राजा के दिन देवलोक के इन्द्र की तरह पूर्ण होते थे। गाहा :
अह अन्नया कयाइवि अत्थाण-गयस्स राइणो तस्स । विणय-पणउत्तमंगो पडिहारो बंधुलो भणई ।।८।।
24
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org