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छाया:
अथ तस्मिन् पुरे प्रभुः प्रभुतकरि-तुरग-रत्न-भंडारः ।
यथा भणित नीतिपालनानन्दित-सकलजनचित्तः ।।७४॥ अर्थ :- हवे ते नगरमा नीतिना पालन वड़े आनन्दित कर्या छे सकल लोकोना मनने एवो पुष्कल हाथी, घोडा, अने रत्नोनां भंडारवाळो राजा हतो। जे प्रमाणे नीतिशास्त्रमा कहयु छे ते प्रमाणे)। हिन्दी अनुवाद :- उस नगर के राजा ने नीति का पालन करके समस्त प्रजाजनों के मन को आनंद प्रदान किया है, वैसा विपुल हाथी-घोड़े और रत्नों के भण्डारवाला वह राजा था। गाहा :
निय-बुद्धि-समुदएणं वसीकयासेस-सत्तु-संताणो ।
संपूरियत्थि-समुदय-मण-पत्थिय-अत्थ-वित्थारो ।७५।। छाया:
निजबुद्धिसमुदायेन वशीकृताशेष-शत्रुसन्तानः ।
संपूरितार्थिसमुदायमनः प्रार्थितार्थ-विस्तारः ।।७५।। अर्थ :- पोतानी बुद्धिना समुदाय बड़े वश करी छे समस्त शत्रु परम्पराने तथा याचक समूहना मनने इच्छित वस्तुओना विस्तार बड़े भरी दीघो छ। एवो ते राजा हतो। (अर्थात् शत्रुओने बुद्धि अने बळथी जीततो हतो अने खूब धनेश्वरी हतो। हिन्दी अनुवाद :- स्वयं की बुद्धि बल से समस्त शत्रु परम्परा को अपने अधीन बनाया है तथा याचक समूह को मनोवाञ्छित के अर्पण से भर दिया है, वैसा वह राजा था।
(अर्थात् शत्रुओं को बुद्धि और कला से जीतता था और स्वयं अत्यंत धनवन्त था।) गाहा :
दठ-कढिण-भुया-ऽपरिमिय-परक्कम-कंत-सयल-पडिवक्खो ।
पडिवक्ख-भामिणी-वयण-नलिण-संकोयण-मयंको ।।६।। छाया:
दृढ-कठिन-भुजापरिमित-परिक्रमाक्लान्त-सकलप्रतिपक्षः।
. प्रतिपक्ष-भामिनीवदननलिन-संकोचनमृगाकः ॥७६॥ अर्थ :- दृढ अने कठीन भुजा वड़े, अपरिमित पराक्रम वड़े दबावी दीधा छे सकल दुश्मनोने तथा दुश्मनोनी स्त्रीओनां मुखरूपी कमळने संकुचित करवामां चन्द्र जेवो (अर्थात् राजा बहु पराक्रमी शूरवीर हतो)। हिन्दी अनुवाद :- दृठ और कठीन भुजा द्वारा अपरिमित पराक्रम से समस्त शत्रुसेना को अपने वश में किया है तथा दुश्मन की स्त्रियों के मुख रूपी कमल को संकुचित करने में चन्द्र जैसा राजा था (अर्थात् बहु पराक्रमी और शूरवीर था)। गाहा :
सरोव्व पिह-पयावो सीहो इव अकय-पर-बलासंको। उयहिव्व सुगंभीरो चंदो इव जण-मणाणंदो ।।७७।।
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