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अर्थ :- पोताना गुरुना चरण प्रसादथी जे कोइ पण शक्ति मारमा छे। ते शक्ति द्वारा उपमा, श्लेष, रूपक तथा वर्णकथी युक्त काव्य बनावी शकाय छे। तो पण तेवा प्रकारचें असमस्त अर्थात् ओछा शब्दो अने वधारे अर्थवाळु काव्य प्रस्तुतमां मारा बड़े रचातु नथी परंतु अज्ञानी लोकोना बोध माटे प्रकट अर्थयुक्त एवं आ काव्य कराय छे। हिन्दी अनुवाद :- स्वयं के गुरु के चरण प्रसाद से जो कोई भी शक्ति मेरे में है - उस शक्ति द्वारा उपमा, श्लेष, रूपक तथा वर्णक से युक्त काव्य बना सकता हूँ। फिर भी इस प्रकार का असमस्त अर्थात् अल्प शब्द और अधिक अर्थवाला काव्य मेरे द्वारा प्रस्तुत नहीं किया जा रहा है किन्तु अज्ञानी लोगों के बोध के लिए स्पष्ट अर्थवाला काव्य रचित होता है। गाहा :- किञ्च।
कथा प्रेरणा सीसिणि-मयहरियाए गुरु-भगिणीए अलंघ-वयणाए । सिरि-कल्लाणमईए पवत्तिणीए उ वयणेण ।।४१।। पारद्धा जं एसा कवित्त-गव्वेण नो मए, तेण ।
कीरइ 'उत्ताणत्था पाइय-गाहाहिं ललिय-पया ।।४२।। छाया:
शिष्या महत्तराया गुरुभगिन्या अलंध्यवचनायाः । श्रीकल्याणमत्याः प्रवर्तिन्याः तु वचनेन ॥४१॥ प्रारब्धा यदेषा कवित्व गर्वेण न मया तेन । कियते उत्तानार्था प्राकृतगाथाभिललितपदा ॥४२॥
-युग्मम् अर्थ :- वळी
अर्लध्य वचनवाळा महत्तरा शिष्या मोटा बेन श्री कल्याणमति प्रवर्तिनीना वचन बड़े स्पष्ट अर्थयुक्त, मनोहर पदवाळु, आ काव्य प्राकृत गाथाओ बड़े मारा बड़े प्रारंभ कराय छ। परंतु कविपणाना गर्वथी नहि.... हिन्दी अनुवाद :- अलंघ्य वचनवाले महत्तरा शिष्या बड़ी बहन श्री कल्याणमति प्रवर्तिनी के वचन से प्रेरित स्पष्ट अर्थयुक्त, मनोहर पदयुक्त यह काव्य प्राकृत गाथाओं से मेरे द्वारा प्रारंभ किया जाता है, किन्तु कवित्व के गर्व से नहीं। गाहा :- .
परिच्छेद गाथानी संख्या हुँ पज्जतं बहुणा पत्थुय-विग्यावहेण विहलेण । विहव-कुल-बालिया-कय-कडक्ख-विक्खेव-सरिसेणं ॥४३।। निसुणह एगग्ग-मणा होउमियाणिं कहं कहिज्जंतं ।। अड्ढाइज्ज-सएहिं गाहाणं कय-परिच्छेयं ।।४४।। -जुम्म
छाया:
हन्त पर्याप्तं बहुना प्रस्तुतविघ्नपथा विफलेन ।
विभवकुलबालिका कृत-कटाक्षविक्षेप सदृशेन ॥४३॥ १. स्पष्टार्थाः
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