________________
छाया :-अपि च
यत्र च 'ग्रामनिवहः कररहिता धर्मवर्जिता मुनयः ।
देशस्य तस्य संवर्णने क उधमं करोति ? ॥५४॥ अर्थ :- अने वळी
ज्यां गामना मुखीओ अने गामना समूहो (कर) हाथ वगरना हता...अने मुनिओ धर्मथी रहित हता। आवा ते देशनां वर्णनमां कोण उद्यम करे ? अर्थात् ते देशनुं वर्णन करवा कोण समर्थ बने ?
अहीं विरोधाभास अलंकार छे। तेनो परिहार आ प्रमाणे।
कररहिया =महेसूल (टेक्स) वगेरेना - धम्मवज्जिया-धनुष्यथी रहित अर्थात् मुनिभगवंतो धनुष्यथी रहित हता। हिन्दी अनुवाद :- जहाँ ग्राम के प्रधान और ग्राम का समूह कर रहित था...और मुनि धर्म से रहित थे। ऐसे उस देश का वर्णन करने के लिए कौन उद्यमित बनेगा? अर्थात् उस देश का वर्णन करने में कौन समर्थ होगा? ___ यहाँ विरोधाभास अलंकार है, उनका परिहार इस प्रकार है :
कर रहिया = महसूल (टैक्स) बिना के थे।
धम्मवज्जिया = धनुष से रहित अर्थात् मुनिभगवंत धनुष्य से रहित थे। गाहा :
तत्थवि य अस्थि वित्थिन्न-जलहि-वलयाणुकारि-परिहाए । पर-पुरिसालंधाए परिक्खितं भमिर-मयराए ॥५५॥
छाया:
तत्रापि चास्ति विस्तीर्ण जलधिवलयानुकारिपरिखया ।
परपुरुषालध्यया परिक्षिप्तं भ्रमणशीलमकरया ॥५५॥ अर्थ :- ते कुरुक्षेत्रमा पण चारेबाजुथी समुद्रना वलय समान आकारवाळी, दुश्मन राज्यना पुरुषो बड़े अलंध्य एवी भ्रमण करतां मगरोवाळी खाइ हती। हिन्दी अनुवाद :- उस कुरुक्षेत्र में भी चारों ओर से समुद्र के वलय जैसी दुश्मन राज्य के पुरुषों के लिए अलंध्य वैसी घूमते हुए मगरमच्छ युक्त खाई थी। गाहा :
हस्तिनापुर नगरनुं वर्णन पडिवक्ख-भयुप्पायण-विसाल-सालेण परिगयं रम्मं । रमणीय-मगर-तोरण-गोउर-दारेहिं
परिकिनं ।।५६।। अइनील-बहल-उववण-विरायमाणावसाण-भागेहिं । मत्तालंब-गवक्खय-जुएहिं वर-चित्त-जुत्तेहिं ।।५७।। नाणा-भूमि-जुएहिं पासाएहिं तुसार-धवलेहिं ।
तन्नयर-वासि-जण-जस-थूहेहिव्व निच्चमइरम्मं ।।५८॥ १. महल्लो : वृद्धो निवहश्च
17
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org