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हिन्दी अनुवाद :- वह शुद्ध धर्म आंतर शत्रुओं के विजय में है और राग-द्वेष ही आंतर शत्रु हैं। राग-द्वेष के विजय में जीवों को सुख है और राग-द्वेष से आधीन जीवों को दुःख है। गाहा :- एवं च ठिए
राग-द्दोसाणुगया जीवा पावेंति विविह-दुक्खाई।
तम्हा तव्वजए च्चिय विबुहेहिं होइ जइयव्वं ।।३४।। छाया :. एवं च स्थिते
रागद्वेषानुगता' जीवाः प्राप्नुवन्ति विविधदुःखानि ।
तस्मात्तद्विजये नूनं विबुधैः भवति यतितव्यम् ।।३४॥ अर्थ :- अने आ प्रमाणे होते छते।।
राग-द्वेषने अनुसरता जीवो विविध दुःखोने पामे छो तेथी तेनाउपर विजय मेळववा माटे ज पंडितो बड़े प्रयत्न करावो जोइए। हिन्दी अनुवाद :- और इस प्रकार होने पर भी
राग-द्वेष का अनुसरण करने वाले जीव विविध दुःखों को प्राप्त करते हैं, अत: उन पर विजय के लिए ही पण्डितों को प्रयत्न करना चाहिए। गाहा :
ग्रन्थ रचनामां मुख्य उद्देश्य एयत्थ-साहण-परा सोलस-परिच्छेय-संगया ललिया ।
पाइय गाहाहिं कहा कीरइ सुरसुंदरी-नामा ।।३५।। छाया:
एतदर्थ-साधन-परा षोडशपरिच्छेदसंगता ललिता ।
प्राकृतगाथाभिः कथा क्रियते सुरसुन्दरीनाम्नी ॥३५॥ अर्थ :- राग-द्वेषने जीतवामां तत्पर सोळ परिच्छेदथी युक्त मनोहर प्राकृत गाथाओ बड़े आ सुरसुंदरी नामनी कथा रचाय छे। हिन्दी अनुवाद :- राग-द्वेष को जीतने के लिए समर्थ सोलह-परिच्छेद से युक्त मनोहर प्राकृत गाथाओं द्वारा यह सुरसुन्दरी नाम की कथा रची जाती है। गाहा :
अबुह-जण-बोहणं तह दुक्कह-लोयाण चित्त-रंजणयं ।
जुगवं णो सक्किज्जइ कवीहिं उभयपि काऊण ।।३६।। छाया :
अबुधजनबोधनं 'तथाऽरूचिलोकानां चित्त-रञ्जनम् ।
युगपद् न शक्यते कविभिरुभयमपि कर्तुम् ॥३६॥ अर्थ :- अबुध लोकोने बोध करवो अने अरुचिवालालोकोनां चित्तने रंजित करवं आम बे वस्तु एक साथे कविओ द्वारा करवा माटे शक्य नथी। हिन्दी अनुवाद :- अबुध लोगों को बोध कराना और अरुचिकरलोगों के चित्त को रञ्जित करना ये दोनों चीज एक साथ में करने के लिए कवि भी सक्षम नहीं है। १. दोस-दे २. दुक्कह दे, अरुचिलोकानां
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