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श्रमण, वर्ष ५५, अंक १.६
जनवरी-जून २००४
खरतरगच्छ - क्षेमकीर्तिशाखा का इतिहास
___शिवप्रसाद निग्रर्थ परम्परा के श्वेताम्बर आम्नाय में चन्द्रकुल से उद्भूत, अत्यन्त प्रभावशाली और अद्यावधि विद्यमान सभी गच्छों में प्राचीनतम खरतरगच्छ है। इस गच्छ में आचार्य जिनदत्तसूरि, मणिधारी आचार्य जिनचन्द्रसूरि, आचार्य जिनकुशलसूरि और अकबरप्रतिबोधक युगप्रधान आचार्य जिनचन्द्रसूरि ये चार दादा गुरु माने गये हैं। तीसरे दादा गुरु आचार्य जिनकुशलसूरि के शिष्य, प्रसिद्ध विद्वान् विनयप्रभ उपाध्याय के प्रशिष्य और विजयतिलक के शिष्य क्षेमकीर्ति हुए। इन्हीं के नाम से खरतरगच्छ की परम्परा में एक उपशाखा प्रसिद्ध हुई, जो क्षेमकीर्तिशाखा या क्षेमधाड़शाखा के नाम से विख्यात हुई। आचार्य क्षेमकीर्ति के चार प्रमुख शिष्यों-क्षेमहंस, तपोरत्न, मोदराज
और गुणरत्न में से क्षेमहंस और तपोरत्न की शिष्य परम्परा लम्बे समय तक विद्यमान रही। इस शाखा में क्षेमराज, जयसोम, गुणविनय, विद्याकीर्ति, मतिकीर्ति, स्यशकीर्ति, भाग्यविशाल, सुमतिसिन्धुर, कीर्तिविलास, जिनहर्ष, कनकविलास आदि अनेक प्रसिद्ध ग्रन्थकार हो चुके हैं, जिन्होंने अपनी कृतियों से संस्कृत और राजस्थानी साहित्य को समृद्ध बनाने में अतुलनीय योगदान दिया। महोपाध्याय विनयसागर जी के अनुसार आज भी इस परम्परा में कुछ यति विद्यमान हैं।
क्षेमकीर्ति के शिष्य क्षेमहंस द्वारा रचित मेघदूतदीपिका नामक एक कृति प्राप्त होती है। इसी शाखा के मुनि क्षेमराज द्वारा रचित विभिन्न कृतियों की प्रशस्तियों से ज्ञात होता है कि वे क्षेमहंस के प्रशिष्य और सोमध्वज के शिष्य थे। इसी शाखा के एक अन्य रचनाकार जयसोम द्वारा रचित कृतियों की प्रशस्तिगत गुर्वावली से ज्ञात होता है कि उनके गुरु का नाम प्रमोदमाणिक्य था जो उक्त क्षेमराज के ही शिष्य थे।६ यह बात निम्नलिखित तालिका से भलीभांति स्पष्ट हो जाती है :
क्षेमकीर्ति (क्षेमकीर्तिशाखा के आदिपुरुष) क्षेमहंस (मेघदूतदीपिका के रचनाकार) सोमध्वज क्षेमराज (विभिन्न कृतियों के रचनाकार) प्रमोदमाणिक्य
जयसोम (प्रसिद्ध ग्रन्थकार) * प्रवक्ता, पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी।
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