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महाराणा प्रताप का पत्र सम्राट अकबर-प्रतिबोधक जैनाचार्य हीरविजयसूरि के नाम : ११९
पदारणो हवो न्हीं सो कारण कही वेगा पदारसी। आगेसुं पटा प्रवाना कारणरा दस्तुर माफक आप्रे है जी माफक तोल मुरजाद सामो आवो सा बरतेगा, श्री बड़ाहजूररी वषत आपरी मुरजाद सामो आवारी कसर पड़ी सुणी सो काम कारण लेखे भूल रही वेगा, जीरो अंदेसो न्हीं जाणेगा आगेसूं श्री हेमा आचारजी ने श्री राजने मान्या है जीरो पटो कर देवाणो जि माफक आगे पटरा भटारष गादी प्र आवेगा सो पटा माफक मान्या जावेगा। श्री हेमाचारजी पेला श्री वडच्छरा भटारषजी ने बड़ा कारण सुं राजन्हे मान्या जि माफक आपने आपरा पटारा गादी प्रपाट हवी तपगछ रा मान्या जावेगाइ सुवाये देसम्हे आप्रे गच्छरो देवरो तथा उपासरा वेगा, जीरो मरजाद श्री राजसुं वा दूजा गछ रा भटारष आवेगा सेो राषेगा, श्री समरण ध्यान देवजातरा जठे, आद करावसी, भूलसी नहीं ने वेगा पदारसी। प्रवानगी पंचोली गोरो। समत १६३५ रा आसोज सुद ५ गुरुवार। अनुवाद -
स्वस्ति श्री मसूदा (अजमेर) शुभ स्थान पर सर्व उपमा लायक भट्टारक महाराज श्री हीरविजय सूरिजी के चरण के स्वाधिपत्य श्री वज्रकटक (सशस्त्र छावनी) चावंड के डेरा स्थान से महाराजाधिराज श्री राणा प्रताप सिंह जी लिखायत पद वन्दना बांचे। यहाँ के समाचार भले हैं। आपके सदा भले की कामना। आप बड़े हैं, पूज्य हैं, सदा कृपा रखी वैसी ही सदा रखें। अप्रंच इन दिनों आपका पत्र नहीं आया सो कृपा कर लिखियेगा। श्री बड़ा हजूर (महाराणा उदय सिंहजी) के समय में आपका पधारना हुआ था उस समय यहाँ से वापस पधारते समय जैनाबाद (फतहपुर सीकरी) के पादशाह अकबर को ज्ञान का प्रतिबोध दिया जिसका चमत्कार बहुत महत्वपूर्ण बताया गया। जीव हिंसा चिडकली तथा पक्षी मात्र का शिकार बन्द करवाया जिसका बड़ा उपकार हुआ। इस तरह जैन धर्म में आप जैसे उद्योतकारी इस समय दूसरा कोई दिखाई नहीं देता। पूर्वी हिन्दुस्तान, अन्तर्वेद, गुजरात समेत चारों दिशाओं में धर्म का बड़ा प्रकाश दिखा उसके बाद आपका पधारना हुआ नहीं इसलिए नहीं आने का कारण बता जल्दी पधारना। आगे से (भविष्य में) पट्टे व परवाने के अनुसार व दस्तुर माफिक आपका तोल (मान) मर्यादा व सामैया आना आदि बर्ताव बराबर होगा। श्री बड़े हजूर (राणा प्रताप के पिता उदयसिंहजी महाराज) के समय आपकी मर्यादा अनुसार सामैया करने की कसर पड़ी सो कामधाम की व्यस्तता के कारण भूल पड़ी होगी। उसका अंदेशा मन में नहीं रखें। पूर्व में श्री हेमाचार्य जी को राज्य ने माना है एवं उसका पट्टा कर दिया गया है उस माफिक आगे पट्ट परम्परा के भट्टारक गद्दी पर आयेंगे उसी तरह सम्मानित किये जायेंगे। श्री हेमाचार्य जी से पहले श्री वडगच्छ के भट्टारकजी को बड़े कारण से राजा ने माना उसी माफिक आपके पाट गादी (पाट परम्परा) तपागच्छ की मानी जावेगी। इसके सिवाय देश में (मेवाड़ में) आपके राज्य एवं दूसरे गच्छ के भट्टारक आयेंगे सो मानेंगे। श्री स्मरण, ध्यान देवं यात्रा में याद करें, भूलें नहीं व शीघ्र पधारें। आज्ञा से पंचोली गोरा ने लिखा। संवत् १६३५ आसोज सुदी पंचमी गुरुवार।
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