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श्रमण, वर्ष ५५, अंक १-६/जनवरी-जून २००४
प्रमोदमाणिक्य की परम्परा में विद्याकीर्ति नामक एक प्रसिद्ध रचनाकार हुए। इनके द्वारा रचित नरवर्मचरित (वि०सं० १६६९); धर्मबुद्धिमंत्रिचौपाई (वि०सं० १६७२); सुभद्रासतीचौपाई (वि०सं० १६७५) आदि कृतियां प्राप्त होती हैं।१७ मोहनलाल दलीचंद देसाई ने विभिन्न साक्ष्यों के आधार पर इनकी गुरु-परम्परा दी है,१८ जो इस प्रकार है : प्रमोदमाणिक्य क्षेमसोम पुण्यतिलक विद्याकीर्ति (नरवर्मचरित वि०सं० १६६९३, धर्मबुद्धिमंत्रिचौपाई वि० सं०
__ १६१२; सुभद्रासतीचौपाई वि०सं० १६७५ आदि के रचनाकार)
उपरोक्त साहित्यिक साक्ष्यों द्वारा ज्ञात छोटी-छोटी गुर्वावलियों के आधार पर शाखा प्रवर्तक मुनि क्षेमकीर्ति के शिष्य क्षेमहंस की शिष्य-सन्तति की एक तालिका संगठित होती है, जो निम्नानुसार है :
क्षेमकीर्ति (शाखा के आदिपुरुष) क्षेमहंस (मेघदूतदीपिका के कर्ता) सोमध्वज क्षेमराज (फलवर्द्धिकापार्थनाथरास, श्रावकाचारचौपाई वि०सं०
| १५४६, चारित्रमनोरथमाला आदि के रचनाकार) प्रमोदमाणिक्य
क्षेमसोम
जयसोम (बारहभावनासंधि तथा
बारहव्रतरांस आदि के
रचनाकार) पुण्यतिलक गुणविनय विजयतिलक सुयशकीर्ति (वि०सं०१६६६.
में शंखेश्वरपार्थ(अघटकुमारचौपाई, मतिकीर्ति प्रमोदतिलक
नाथगाथास्तवन धर्मबुद्धिरास आदि ।
के कर्ता) के कर्ता) विद्याकीर्ति
सुमतिसिंधुर सुमतिसागर भाग्यविशाल (गुणावलीचौपाई प्रतिलिपिकार) (वि०सं०१६६९ में नरवर्मचरित;
कीर्तिविलास वि०सं० १६७२ में
कनककुमार
(विभिन्न स्तवनों वि०सं०१६७५ में
कनकविलास (वि०सं० १७३८ में देवराजवच्छराजचौपाई के सुभद्रासतीचौपाई
रचनाकार) आदिकेरचनाकार)
धर्मतिमंत्रिचौपाई
के रचयिता)
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