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१८६ : श्रमण, वर्ष ५५, अंक १-६/जनवरी-जून २००४
उपाध्याय यशोविजय जी और खरतरगच्छीय युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि की परम्परा के महोपाध्याय समयसन्दर। इनके द्वारा रचित शताधिक कृतियां उपलब्ध हैं जो संस्कृत-प्राकृत और मरु-गुर्जर भाषा में हैं।
प्रस्तुत कृति उपाध्याय यशोविजय जी द्वारा संस्कृत भाषा में रची गयी है जो सात प्रबन्धों और २१ अधिकारों में विभक्त है। इस कृति के अनुवादक और विशेषार्थ के लेखक डॉ० रमनलाल ची० शाह वर्तमान युग में जैन साहित्य के श्रेष्ठतम विद्वानों में से हैं। उनकी लेखनी से अब तक शताधिक पुस्तकें नि:सत हो चुकी हैं। पुस्तक के प्रारम्भ में उन्होंने उपाध्याय यशोविजय जी के जीवन और उनके साहित्यावदान पर विस्तृत प्रकाश डाला है। अध्यात्म जैसे गूढ़ विषय के इस ग्रन्थ को सरल भाषा में प्रस्तुत कर पाने की सामर्थ्य डॉ० शाह जैसे समर्थ विद्वान् के ही वश की बात है। यह पुस्तक अध्यात्मप्रेमियों एवं शोध अध्येताओं दोनों के लिये समान रूप से पठनीय और मननीय है।
ऐसे महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ का सरल भाषा में अनुवाद और विशेषार्थ प्रस्तुत करने हेतु डॉ० शाह तथा उसे अत्यधिक व्यय के साथ प्रकाशित कर उसे अध्यात्मप्रेमियों को अमूल्य (?) उपलब्ध कराने हेतु अनुवादक और प्रकाशक सभी बधाई के पात्र हैं।
सत्य और जीवन, लेखक - महात्मा भगवानदीन, सम्पा० - जमनालाल जैन, प्रका० - शुचिता प्रकाशन, अभय कुटीर, सारनाथ, वाराणसी, प्रमुख वितरक - वीनस बुक सेन्टर, गोकुलपेठ मार्केट, धरमपेठ, नागपुर, छठा संस्करण - २००३, आकार - डिमाई, पृष्ठ - २४+१७४, मूल्य - १००/
विश्व इतिहास में ऐसे विचारक तो मिलते हैं जिन्होंने ईश्वर को स्वीकार नहीं किया किन्तु ऐसा कोई विचारक नहीं मिलता जिसने सत्य को स्वीकार न किया हो। हम सभी सत्य के उपासक हैं और सत्य की खोज में दर-दर भटकते रहते हैं। सभी की एक ही कामना रहती है - सत्य का साक्षात्कार करना। सत्य ही सुख का स्रोत है। सत्यान्वेषण के अर्थ को उस दृष्टि में रखते हुए प्रस्तुत पुस्तक में महात्मा भगवानदीन ने पाठकों से अपने जीवन में सत्य को शामिल कराने का सुन्दर प्रयास किया है। प्रस्तुत पुस्तक पांच खण्डों में विभक्त है। सत्य के रूप, सत्य की खोज, सत्य और सुख-दुःख, सत्य और धर्म - दर्शन एवं परिशिष्ट के अन्तर्गत ज्ञान की मान्यताएँ और सोचने का ढंग शीर्षक से मनुष्य के जीवन में सत्य को सुन्दर ढंग से समझाने का प्रयास किया गया है। पुस्तक के सभी लेख लगभग आधी शताब्दी पूर्व विज्ञान की कसौटी पर रख कर लिखे गए हैं जो आज भी उपयोगी हैं।
. राघवेन्द्र पाण्डेय (शोध छात्र)
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