________________
छाया:
कुटिलत्वं नोज्ाति परच्छिद्रगवेषकश्च द्विजिहः ।
प्रार्थ्यमानोऽपि कविभिः दुर्जन: सर्पसदृक्षः ।।२०।। अर्थ :- बीजाना बिलने शोधतो सर्प कुटिलपणाने छोडतो नथी। तेम बीजानां दोषने शोधनार सर्प जेवा दुर्जनो (पण) कविओ बड़े प्रार्थना कराये छते पण पोतानु कुटिलपणु छोड़ता नथी। हिन्दी अनुवाद :- औरों के बिल को ढूंढता हुआ सर्प खुद के कुटिलत्व को छोड़ता नहीं है ठीक वैसे ही दूसरों के दोष को देखनेवाला सर्प जैसा दुर्जन भी कविओं की प्रार्थना होने पर भी अपना कुटिलत्व नहीं छोड़ता है। गाहा :- अब्भत्थिओ वि वंको कलुसिय-हियओ 'सुवित्त-परिहीणो ।
चंदोव्व दुज्जणो इह दोसासंगे पयासेइ ।।२१।। छाया:
अभ्यर्थितोऽपि वकः कलुषितहृदयः सुवृत्त-परिहीनः ।
चन्द्र इव दुर्जन इह दोषासङ्गान् प्रकाशयति ।।२१।। अर्थ :- कलङ्कित गोळाकारथी रहित, चन्द्र रात्रिमा प्रकाशे छे। तेम वक्र, कलुषित हृदयवाळो, सदाचारथी रहित दोषोना संगने पामीने प्रार्थना कराये छते पण दुर्जन अहिं प्रकाशे छ। हिन्दी अनुवाद :- कलङ्कित, गोलाकार से रहित चंद्र रात्रि में प्रकाशमान होता है। वैसे वक्र, कलुषितहृदयवाला, सदाचार से रहित दुर्जन दोषों का सङ्ग पाकर प्रार्थना करने पर भी यहां प्रकाशित होता है। (दोष शब्द का अर्थ चन्द्र के पक्ष में रात्रि और दुर्जन के पक्ष में दोषों की दुर्गुणों की संगति पाकर दुर्जन प्रकाशित होता है)। यहाँ श्लेष अलंकार है। गाहा :
ललिए व निठुरे वा कव्वे दोसो खलेहिं घेतव्यो ।
उट्ठ-मुहाओ अहवा 'नीहरइ न जीरयं कहवि ।।२२।। छाया :__ ललिते वा निष्ठुरे वा काव्ये दोषः खलैर्गृहीतव्यः ।
उष्ट्रमुखादथवा निस्सरति न जीरकं कथमपि ॥२२॥ अर्थ :- मनोहर अथवा निष्ठुर काव्यमां दुर्जनो बड़े दोष ज ग्रहण कराय छे। अथवा ऊंटनां मुखमांथी क्यारे पण जीरु नीकळतु नथी। हिन्दी अनुवाद :- मनोहर काव्य हो या निष्ठुर काव्य, दुर्जनों द्वारा दोष ही ग्रहण किया जाता है। अथवा ऊंट के मुख में से कभी जीरा निकलता है?
१. सुवृत्तं = चन्द्रपक्षे शोभनकुण्डलाकारः दुर्जनपक्षे = सदाचारः २. दोसासंगे = चन्द्रपक्षे रात्रेः स्वाङ्गे, दुर्जनपक्षे दोषाणां दूषणानामासङ्गे। ३.निस्सरति
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org