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१८४ : श्रमण, वर्ष ५५, अंक १-६/जनवरी-जून २००४ भेंट दी है। ऐसे महत्त्वपूर्ण एवं प्राचीन ग्रन्थों के गुर्जरानुवाद को अत्यन्त अल्पमूल्य में प्रस्तुत करने के कारण प्रकाशक संस्था और उसके संचालक बधाई के पात्र हैं।
श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ जैन देहरासर (चन्दनबाला) ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित पार्श्वनाथचरित्र के सम्बन्ध में यह बात खटकने वाली है कि पुस्तक में न तो प्रकाशक का पता दिया गया है और न ही मूल्य, अत: इसे प्राप्त करने के इच्छुक जिज्ञासु इसे कैसे प्राप्त कर सकते हैं। आशा है प्रकाशक गण इस ओर ध्यान देंगे। उत्तम कागज पर मुद्रित दोनों ही पुस्तकों की साज-सज्जा अत्यन्त आकर्षक और मुद्रण सुस्पष्ट है।
जैनदर्शननां वैज्ञानिक रहस्यो (Scientific Secrets of Jainism) लेखकमुनिश्री नंदिघोष विजयजी म.सा०; प्रथम संस्करण - जनवरी २०००; प्रका० - प्राचीन भारतीय साहित्य वैज्ञानिक रहस्य शोध संस्था, सी/७, राधे अपार्टमेन्ट, शाहीबाग, अहमदाबाद ३८० ००४; आकार - डिमाई, पृष्ठ २४+३४०; मूल्य १२०/- रुपया।
प्रस्तुत पुस्तक मुनि नंदिघोष विजयजी म.सा० द्वारा लिखे गये ३१ आलेखों का संकलन है। मुनिश्री के ये आलेख देश की प्रतिष्ठित जैन पत्रिकाओं यथा नवनीत समर्पण, तीर्थंकर, अर्हत् वचन, जैन जर्नल, तुलसी प्रज्ञा आदि में समय-समय पर प्रकाशित हो चुके हैं। ये आलेख १९९५ ई० में महावीर जैन विद्यालय, मुम्बई द्वारा जैन दर्शन - वैज्ञानिक दृष्टिये के नाम से एक पुस्तिका के रूप में प्रकाशित हुए और पाठक वर्ग में इतने लोकप्रिय हुए कि पुस्तक की सम्पूर्ण प्रतियां समाप्त हो गयीं। पाठकों की निरन्तर मांग पर अहमदाबाद की संस्था - "प्राचीन भारतीय साहित्य वैज्ञानिक रहस्य शोध संस्था द्वारा इनका पुनर्प्रकाशन किया गया। प्रस्तुत पुस्तक में दिये गये सभी आलेख मौलिक हैं। यह अत्यन्त हर्ष और गौरव का विषय है कि विज्ञान जैसे जटिल विषय पर प्राचीन जैनाचार्यों द्वारा किये गये मौलिक शोध को आज विभिन्न जैन विद्वानों द्वारा समाज के समक्ष प्रस्तुत किया जा रहा है। मुनिश्री नंदिघोष विजय जी द्वारा प्रस्तुत यह ग्रन्थ भी उसी परम्परा की एक कड़ी है।
पुस्तक की साज-सज्जा और मुद्रण भी विषय की गम्भीरता के अनुकूल है। ऐसे महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ के पुनर्प्रकाशन हेतु प्रकाशन संस्था बधाई की पात्र है।
Philosopher Karma Scientists, लेखक - प्रो० लक्ष्मी चन्द्र जैन एवं डॉ० राजेन्द्र त्रिवेदी; प्रका० श्री ब्राह्मी सुन्दरी प्रस्थाश्रम, २१, कंचनविहार, विजयनगर, जबलपुर (म०प्र०); द्वितीय संशोधित एवं आंग्ल भाषा संस्करण २००३ ई०; आकारडिमाई; पृष्ठ ४+६०; मूल्य-५०/
___ आंग्ल भाषा में लिखित प्रस्तुत पुस्तक में दिगम्बर परम्परा के प्राचीन आचार्योंआचार्य गुणधर, आचार्य धरसेन, आचार्य पुष्पदन्त, अर्हत् भूतबलि, यतिवृषभ, आचार्य
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