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१९० : श्रमण, वर्ष ५५, अंक १-६ / जनवरी - जून २००४
परिवर्तनशील है, स्वयं को पहचानिए, अनुशीलन, जे आया से विन्नाया, आत्म मूल्यांकन, आतम गुण सब रतन सरीखे, तन महिँ चेतन देव कहावे, संयम गोयम मा पमायए आदि लेखों का संकलन है। सभी लेख शिक्षाप्रद हैं। आचार्यश्री की प्रारम्भ में पठमं नाणं, अनुशीलन और संयम गोयम मा पमायए, नाम से तीन कृतियों का प्रकाशन हुआ था। उन्हीं तीन लघु कृतियों का संयुक्त संस्करण पठमं नाणं है। प्रस्तुत पुस्तक में जैनागमों के मूल तत्वों का ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप तथा जैन दर्शन के कर्मवाद, अनेकान्तवाद आदि पर सोदाहरण प्रकाश डाला गया है। यह पुस्तक सुधी पाठकों के लिए अत्यन्त ही उपयोगी है। पाठक इसे पढ़कर और अपने में आत्मसात कर निश्चित ही लाभान्वित होंगे।
राघवेन्द्र पाण्डेय (शोध छात्र)
प्रज्ञा ध्यान
मा पमायए, लेखक- आचार्यश्री शिवमुनि जी मं०सा०, प्रका एवं स्वाध्याय केन्द्र, मुम्बई, संस्करण - २००१, आकारर-डिमाई, पृष्ठ- २००
मा पाए नामक इस पुस्तक में आचार्य श्री शिवमुनि म०सा० द्वारा समयसमय पर दिए गए प्रवचनों का संकलन है । शीर्षक के अनुरूप ही पुस्तक के सभी लेख शिक्षाप्रद हैं। मुनिश्री ने प्रवचनों में उचित दृष्टांत के माध्यम से इसे काफी रोचक बना दिया है जो सहज ही हृदय में आत्मसात हो जाता है। इस पुस्तक में अकथ कहानी संत की; सुख का सार सूत्र; मुक्ति की युक्ति; सा विद्या या विमुक्तए; बीज में छिपा वृक्ष; बाल संस्कार के सूत्र, बाल विकास में कैसे सहयोगी बनें; आहार और निद्रा के सन्दर्भ में व्यक्ति के व्यक्तित्व का मूल्यांकन; मा पमायए; जीवन के दो मार्ग; अपने भीतर महावीर को प्रकट करने की विधि शीर्षक से प्रवचनों का संकलन है। आशा है सुधी पाठक इसे पढ़कर लाभ उठाएंगे।
राघवेन्द्र पाण्डेय (शोध छात्र) अन्तर्यात्रा, लेखक- आचार्यश्री शिवमुनि जी म०सा०, प्रका० प्रज्ञा ध्यान एवं स्वाध्याय केन्द्र, मुम्बई, प्रथम संस्करण - २००१, आकार-डिमाई, पृष्ठ- २००
प्रस्तुत पुस्तक भी आचार्य शिवमुनि जी द्वारा दिए गए प्रवचनों का संकलन है। इसमें अभय-अहिंसा का प्राणतत्व; स्वरूप के साथ जीना ही धर्म है; अनशन उपवास कैसे करें ? आकांक्षाः दुःख का द्वार; मुक्ति का मंत्र; ज्ञान दृष्टि और अज्ञान दृष्टि; पण्णा समिक्ख धम्मं विनय मोक्ष का द्वार आदि शीर्षक में प्रवचनों का संकलन हैं। सभी प्रवचन शिक्षाप्रद हैं। मुनिश्री ने प्रवचनों में उचित दृष्टान्तों के माध्यम से इसे काफी रोचक एवं उपयोगी बना दिया है। सभी लेख सहज ही मन में आत्मसात हो जाते हैं। पुस्तक संग्रहणीय है।
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राघवेन्द्र पाण्डेय (शोध छात्र)
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